काव्य-रचना
तुम पुरुष नहीं तुम दानव हो
तुम पुरुष नहीं तुम दानव हो
यदि पुरुष शब्द का ज्ञान नहीं
पुरुषत्व नहीं पुरुषार्थ नहीं
दृष्टित होता परमार्थ नहीं
बस अहम असत्य का है तुममें
होते तुम कभी कृतार्थ नहीं
कहते तुम खुद को मर्द सदा
पर मर्द के अर्थ का ज्ञान नहीं
कैसे कह दें कि मर्द हो तुम
जब किसी के दर्द का ज्ञान नहीं
ना सोच उत्कृष्टता की तुममें
सब कर्म निष्कृता के तुममें
स्त्री को अबला कहते हो
नारी शक्ती का मान नहीं
अपकर्ष में करते आर्तनाद
उत्कर्ष मिला तो सिंहनाद
संयम संतोष नहीं तुममें
दुर्व्यसनों का परित्याग नहीं
श्रृंगार करो तुम स्त्री से
चिंतन करते पर स्त्री के
आभूषित कंचन गहनों से
सद्गुण आभूषण मान नहीं
तुम पुरुष नहीं तुम दानव हो
क्या तुम भी क्या मानव हो
यदि पुरुष शब्द का ज्ञान नहीं।
विवेक पाण्डेय