कागज़ों में करोड़ों, जमीन पर शून्य बीएचयू की सुरक्षा

कागज़ों में करोड़ों, जमीन पर शून्य बीएचयू की सुरक्षा
  • बीएचयू में आग लगी तो न सीढ़ी चली, न फायर एक्सटिंग्विशर मिला, ‘फायर सेफ्टी’ फेल
  • एशिया की टॉप यूनिवर्सिटी बीएचयू में रस्सी तक नहीं, आग बुझाने के इंतज़ाम काग़ज़ी
  • छात्रों की जान पर खेल, अधिकारियों की जेब गरम, भ्रष्टाचार ने सुरक्षा को बनाया मज़ाक

वाराणसी (रणभेरी सं.):  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र और ‘स्मार्ट सिटी’ के नाम पर करोड़ों खर्च होने वाले बनारस में सुरक्षा इंतज़ामों की असलियत एक बार फिर आग की लपटों में नज़र आई। यह वही शहर है जहाँ लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी सांसद हैं और राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की डबल इंजन सरकार काम कर रही है। लेकिन जब बीएचयू जैसी एशिया की सातवें नंबर की यूनिवर्सिटी में आग लगी, तो सरकारी मशीनरी की पोल खुलती देर नहीं लगी।

बीएचयू के जिस परिसर में करोड़ों का बजट खर्च कर आधुनिक फायर सेफ्टी सिस्टम दिखाए जाते हैं, वहां घटना के वक्त एक भी फायर एक्सटिंग्विशर काम नहीं आया। मौके पर मौजूद छात्रों ने बताया कि सुरक्षा में तैनात कर्मियों के पास न तो कोई अग्निशमन यंत्र काम कर रहा था और न ही ऊपरी मंज़िलों तक पानी पहुंचाने के लिए एक साधारण रस्सी तक उपलब्ध थी। छात्रों का साफ कहना था कि, यहां सिर्फ काग़ज़ों में फायर सेफ्टी है, जमीन पर कुछ नहीं।

सबसे बड़ा सवाल तब उठा जब मौके पर पहुंची फायर ब्रिगेड की सीढ़ी भी खुल नहीं सकी। आग से जूझ रहे छात्र और कर्मचारी घंटों इंतजार करते रहे कि सीढ़ी ऊपर उठ जाए, लेकिन मशीनरी ने धोखा दे दिया। जिस स्मार्ट सिटी के नाम पर बड़े-बड़े बोर्ड लगाए जाते हैं, वही शहर एक बुनियादी सीढ़ी तक चलाने में असमर्थ दिखा। छात्रों ने आरोप लगाया कि बीएचयू प्रशासन और संबंधित विभागों ने सुरक्षा पर करोड़ों के बजट तो पास कराए, लेकिन वास्तविक खरीद और ग्राउंड व्यवस्था में भारी अनियमितताएं साफ नजर आ रही हैं। कई छात्रों ने कहा कि यहां अधिकारियों के पेट घूस से इतने भर गए हैं कि सुरक्षा की तरफ देखने की जरूरत ही महसूस नहीं होती। कागज़ पर एक्सटिंग्विशर खरीद लो, फोटो खिंचवा लो, काम खत्म!

बीएचयू जिस स्तर की यूनिवर्सिटी है, वहां फायर सेफ्टी सिस्टम अंतरराष्ट्रीय स्तर का होना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि स्थानीय मोहल्लों के छोटे स्कूलों में भी कुछ बेहतर इंतज़ाम मिल जाते हैं। बीएचयू जैसे विशाल और ऐतिहासिक संस्थान में फायर अलर्ट सिस्टम, पानी की पाइपलाइन, सीढ़ियां, फायर बॉल, फायर ब्लैंकेट जैसी बुनियादी चीजों का न होना गंभीर लापरवाही का संकेत है।
छात्रों का कहना है कि घटना ने यह साबित कर दिया है कि उनकी जान की कीमत प्रशासन की नज़र में कुछ नहीं है। “छात्र जिए या मरे, किसी को फर्क नहीं पड़ता।

बीएचयू की सुरक्षा व्यवस्था की यह स्थिति सिर्फ एक हादसे का परिणाम नहीं बल्कि लापरवाही और भ्रष्टाचार की लंबी श्रृंखला का नतीजा है। समय-समय पर सुरक्षा समीक्षा बैठकें तो होती हैं, लेकिन उनमें लिए गए फैसले अमल में नहीं उतरते। अधिकारी सिर्फ फाइलें आगे बढ़ाते हैं, और बजट का बड़ा हिस्सा ‘प्रक्रिया’ में ही खर्च हो जाता है। यह घटना सरकार और प्रशासन दोनों के लिए एक बड़ा चेतावनी संकेत है। स्मार्ट सिटी का सपना, डबल इंजन सरकार की ताकत और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय का दावा तभी सार्थक है, जब जमीन पर व्यवस्था मजबूत हो।

बीएचयू आगकांड ने दिखा दिया है कि काग़ज़ी योजनाओं और वास्तविक सुरक्षा के बीच कितनी बड़ी खाई है। अब जरूरत है कि फायर सेफ्टी सिस्टम की खुली और पारदर्शी जांच की जाए, कौन-सी मशीनें खरीदी गईं, कौन-से उपकरण काम कर रहे हैं, किन विभागों की लापरवाही से हालात बिगड़े। क्योंकि बीएचयू जैसी संस्था में लापरवाही का मतलब सिर्फ संपत्ति का नुकसान नहीं, बल्कि हजारों छात्रों की जिंदगी से खिलवाड़ है।