अपराध की गंभीरता नाबालिग की जमानत खारिज करने का आधार नहीं, सुधार
प्रयागराज। मामला शाहजहांपुर के तिलहर थाना क्षेत्र का है। एक हत्या के एक मामले में नाबालिग को आरोपी बनाया गया था। इस मामले के सह अभियुक्त राजेश, अखिलेश, मिथलेश और कमलेश जमानत पर रिहा हो चुके हैं। लेकिन, नाबालिग की जमानत अर्जी किशोर न्याय बोर्ड ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि मामला हत्या जैसे जघन्य अपराध का है। बोर्ड के इस आदेश के खिलाफ बाल न्यायालय की विशेष न्यायाधीश की अदालत में दाखिल अपील में भी न्याय बोर्ड के आदेश की पुष्टि कर दी है। इसके खिलाफ नाबालिग ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष आरोपी नाबालिग घोषित किया जा चुका है। सह अभियुक्त जमानत पर रिहा हो चुके हैं। नाबालिग का कोई अपराधिक इतिहास भी नहीं है। महज अपराध की गंभीरता के आधार पर जमानत खारिज किया गया है। कोर्ट ने नाबालिग की पुनरीक्षण याचिका मंजूर करते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि नाबालिग का मामला किशोर न्याय अधिनियम के प्रविधानों से संरक्षित है। इसलिए नाबालिग की जमानत अर्जी पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता से ज्यादा उसके सुधारात्मक उपाय और पुनर्वास पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कोर्ट यह भी स्पष्ट किया कि किशोर को जमानत देने से तभी इन्कार किया जा सकता है, जब यह मानने का उचित आधार हो कि रिहाई से किशोर आदतन अपराधियों से जुड़ जाएगा। साथ ही अपने नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक जीवन को खतरे में डाल देगा। इस मामले में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं प्रतीत हो रही है।