वर्ल्ड लंग कैंसर दिवस: सिगरेट से ज्यादा प्रदूषण से खराब हो रहे फेफड़े
वाराणसी (रणभेरी सं.)। एक पैकेट सिगरेट पीने से जितना फेफड़े को नुकसान होता है, उससे ज्यादा गाड़ियों के धुएं से नुकसान होता है। सड़क पर जाम लगने पर गाड़ियों से धुआं निकलता रहता है, कभी पांच मिनट तो कभी इससे अधिक समय तक लोगों को सड़क पर इस प्रदूषण के बीच खड़े रहना पड़ता है। इसके अलावा सड़कों के किनारे धूल की परत भी जमी है। वायु प्रदूषण की वजह से लोगों को फेफड़े की बीमारी हो रही है। टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के साथ ही सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग में इस तरह की समस्या लेकर मरीज पहुंच रहे हैं। बीएचयू अस्पताल में हर महीने पांच से सात नये मरीजों में फेफड़े खराब होने की पुष्टि हो रही है। इसको लेकर डॉक्टर भी चिंतित है। उनका कहना है कि वैसे तो सिगरेट पीना इस बीमारी की वजहों में प्रमुख है, लेकिन जिस तरह से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, यह भी ठीक नहीं है। स्वस्थ्य फेफड़े के लिए डॉक्टर धूम्रपान न करने और खानपान पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते हैं। फेफड़े के कैंसर से बचाव के प्रति जागरूकता के लिए ही हर साल एक अगस्त को वर्ल्ड लंग कैंसर दिवस मनाया जाता है। सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग के प्रो. मनोज पांडेय का कहना है कि फेफड़े के सही से काम न करने के लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार कारक प्रदूषण है। इस तरह की समस्या लेकर जो मरीज टीबी-चेस्ट डिपार्टमेंट में आते हैं। वहां प्राथमिक स्तर पर जांच के बाद आगे की सर्जरी, इलाज के लिए सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग में भेजा जाता है। आम तौर पर यह बीमारी 50 साल से उम्र के बाद वाली है, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह देखा जा रहा है कि सिगरेट पीने की लत और धुल, धुआं की अधिकता से 40 से 50 साल के बीच वाले लोग भी इसकी जद में आ रहे हैं।
काशी की आबो हवा भी है खराब
काशी की आबो हवा भी खराब है। यानी यहां प्रदूषण का मानक भी बहुत अधिक है। देश के प्रमुख शहरों के वायु प्रदूषण की स्थिति पर हाल ही में जारी हुई एक रिपोर्ट में भी इसका जिक्र किया गया है। इसमें काशी में पीएम 2.5 को 82.1 बताया गया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि काशी में प्रदूषण से मौत का आंकड़ा 10.2 प्रतिशत है। इस अध्ययन में वाराणसी से भी विशेषज्ञों को शामिल किया गया था।
100 मरीजों में 10 को होती है अनुवांशिक बीमारी
प्रो. मनोज पांडेय का कहना है कि फेफड़े की बीमारी अनुवांशिक भी होती है। आंकड़ों पर अगर गौर करे तो अगर 100 मरीजों को यह बीमारी हो रही है तो इसमें से 10 मरीजों में यह बीमारी अनुवांशिक कारणों से होती है। ओपीडी में आने वाले मरीजों को भी इस बीमारी से बचाव के बारे में जागरूक किया जाता है