हरने दीनन की पीर, धरा पर प्रगटे संत कबीर

वाराणसी (रणभेरी सं.)। संत कबीर का जन्म संवत 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए हिंदू कैलेंडर की इस तिथि पर कबीरदास जयंती मनाई जाती है। इन्हें कबीर साहब या संत कबीरदास भी कहा जाता है। इनके नाम पर कबीरपंथ संप्रदाय प्रचलित है। इस संप्रदाय के लोग इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं। काशी में कबीर जन्मोत्सव तीन दिन मनाया जा रहा है। इसकी शुरूआत रविवार शाम से हुई। मंगलवार, 10 जून को ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा पर जन्मोत्सव का समापन है। लहरतारा में कबीर के जन्मस्थल पर सत्संग चल रहा है। दूसरे दिन सोमवार सुबह 9 से दोपहर 12 बजे और शाम 7 से रात 10 बजे तक आयोजन है। इसमें कबीर वाणी पर चर्चा और प्रवचन शामिल है। 10 जून को सुबह 9 बजे से 11 बजे तक शोभायात्रा निकाली जाएगी। रात 8 बजे से आनंद चौका आरती अर्धनाम करेंगे। संत कबीर प्राकट्य स्थली के मुख्य द्वारा के दोनों ओर सजावटी सामान से लेकर खिलौने और महिलाओं के शृंगार के सामान की दुकानें सज गई हैं।
संत अधनाम ने बताया कि सद्गुरु कबीर प्राकट्यधाम से जुड़े मठ 40 देशों में संचालित हैं। विदेशों में एक लाख से अधिक अनुयायी हैं। जबकि कुल 2600 मठ संचालित हैं। इसमें देश के हर प्रांतों में मठ हैं। ज्यादा यूपी के अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बिहार में हैं। प्राचीन कबीर मूलगादी से देश-विदेश में चार हजार से अधिक मठ संचालित हैं। लेकिन, गर्मी ज्यादा है। इसलिए विदेश के अनुयायी इस जन्मोत्सव में नहीं आ रहे। देश के अन्य राज्यों से अनुयायियों के पहुंचने का सिलसिला जारी हैं?। सभी के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था की गई है।
समाज की बुराइयां खत्म करने में बिता दिया जीवन
कबीरपंथी संत अधनाम बताते हैं कि संत कबीर अंधविश्वास, ढोंग, पाखंड और व्यक्ति पूजा के कट्टर विरोधी रहे। संत कबीर आडंबरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में मानव को एक समान रहने और सद्भाव बनाने का प्रयास किया। समाज की बुराइयों को खत्म करने में उन्होंने पूरा जीवन मानव सेवा में बिता दिया। अपने जीवन के आखिरी पल तक इसी कोशिश में लगे रहे।
कबीरपंथी लोग गांव-गांव में साहब जी के उपदेशों का करते हैं प्रचार-प्रसार
बिहार से वाराणसी पहुंचे सुरेश दास ने बताया- हम सभी तीन दिन तक सत्संग सुनते हैं। साहब जी द्वारा जो उपदेश दिया जाता है, उसे सालभर अपने क्षेत्र में घूम-घूम कर लोगों को बताते हैं। हम सभी को यह सीख देते हैं कि वह गलत काम न करें। मांस-मदिरा का सेवन न करें। इसके अलावा कबीर के बताए हुए रास्तों पर चलकर अपने आप को एक सज्जन व्यक्ति बनाएं। उन्होंने बताया कि तीन दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में पूरे देश से लोग शामिल होंगे। 10 जून को बड़ी संख्या में लोग जन्मोत्सव मनाने के लिए पहुंचेंगे