सजावट में ही खामी ! सौंदर्यीकरण के पिलरों से उखाड़ा जा रहा प्लास्टर

सजावट में ही खामी ! सौंदर्यीकरण के पिलरों से उखाड़ा जा रहा प्लास्टर
  • रविंद्रपुरी के पिलरों का प्लास्टर चंद दिनों में फेल, विकास का दिखावा बेनक़ाब!
  • गुणवत्ता में कमी का बहाना, पिलरों से उखाड़ा जा रहा चित्रनुमा प्लास्टर
  • पीडब्ल्यूडी–छात्र शक्ति कंस्ट्रक्शन पर सवाल : बार-बार काम, बार-बार भुगतान ?
  • जनता पूछ रही - किसकी जेब से जाएगी दोबारा खर्च की भरपाई ?
  • पीएम के संसदीय क्षेत्र में विकास के नाम पर हो रहा पैसों की बर्बादी का खुला खेल

वाराणसी (रणभेरी): रविंद्रपुरी मार्ग पर सौंदर्यीकरण के नाम पर चल रहा काम एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सार्वजनिक धन का उपयोग कितनी लापरवाही और बिना योजना के किया जा रहा है, इसकी बानगी इस मार्ग पर लगे पिलरों से उखाड़े जा रहे चित्रनुमा प्लास्टर के रूप में सामने आई है। लाखों की लागत से बनाए गए सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट का यह हिस्सा अब दोबारा लगाया जाएगा, क्योंकि पहली बार में की गई गुणवत्ता पूरी तरह फेल हो गई है। रविंद्रपुरी मार्ग शहर के वीआईपी क्षेत्रों में शुमार है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र होने के कारण यहां विकास कार्यों और सौंदर्यीकरण को लेकर सरकार और विभाग दोनों ही संवेदनशील होने का दावा करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत बताती है कि इस संवेदनशीलता की कीमत जनता अपने खून-पसीने के पैसे से चुका रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अभी कुछ ही महीने पहले इन पिलरों पर चित्रकारी और डिजाइननुमा प्लास्टर चढ़ाया गया था। लेकिन अब पीडब्ल्यूडी और ठेका लेने वाली कंपनी छात्र शक्ति कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने इसे गुणवत्ता में कमी, बॉर्डर में खराबी और बेरंग कलर का हवाला देकर तोड़ना शुरू कर दिया है। सवाल उठता है कि जब पहली बार काम हुआ, तब जांच किसने की थी ? गुणवत्ता परीक्षण की जिम्मेदारी किसकी थी ? और अगर कमी थी, तो भुगतान किस आधार पर कर दिया गया ? पिलरों से तेजी से हटाया जा रहा चित्रनुमा प्लास्टर इस बात का सबूत है कि या तो सामग्री घटिया थी, या फिर कार्य को बिना विशेषज्ञता के जल्दबाजी में कराया गया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि ये काम कभी धूप-बारिश का नहीं टिक सकता था और वही हुआ।

छात्र शक्ति कंस्ट्रक्शन पर उठ रही उंगली

इस प्रोजेक्ट का काम छात्र शक्ति कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया था, जिसका संबंध रसड़ा के बसपा विधायक उमाशंकर सिंह से बताया जाता है। यह जानकारी सामने आने के बाद पूरा मामला और भी चर्चा में आ गया है। सवाल उठ रहा है कि क्या ठेका प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी थी या फिर कोई खास प्रभाव में आकर यह काम दिया गया? स्थानीय लोग खुलकर कह रहे हैं कि जब काम की शुरुआत ही इतनी विवादित हो, तो गुणवत्ता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जनता पूछ रही है कि क्या यह महज संयोग है कि विधायक से जुड़े कंपनी को ही करोड़ों का प्रोजेक्ट मिल गया, या फिर पर्दे के पीछे कोई राजनीतिक-सांठगांठ काम कर रही थी ? रविंद्रपुरी के निवासियों का कहना है कि यदि ठेके की प्रक्रिया साफ-सुथरी होती, तो इतना घटिया और दोबारा करने लायक काम पहली बार में ही कैसे पास हो गया? लोग यह भी जानना चाहते हैं कि क्या इस मामले में विभाग कोई जवाबदेही तय करेगा या फिर यह भी बाकी परियोजनाओं की तरह सिर्फ विवाद बनकर रह जाएगा।

दोबारा खर्च का बोझ जनता पर क्यों ?

अधिकारियों का कहना है कि पिलरों पर दोबारा प्लास्टर लगाकर उन्हें डिजाइननुमा लुक दिया जाएगा और इससे सौंदर्यीकरण पहले से बेहतर दिखेगा। लेकिन सवाल यह है कि यह बेहतर आखिर किस कीमत पर आएगा ? पहली बार में लगाया गया प्लास्टर कुछ ही महीनों में उखड़ गया, जिससे साफ है कि या तो सामग्री घटिया थी या फिर काम जल्दबाज़ी और लापरवाही में किया गया। अब जब दोबारा पूरा काम करवाया जा रहा है, तो यह खर्च कौन वहन करेगा, ठेकेदार या विभाग ? अधिकारियों के पास इसका कोई साफ जवाब नहीं है। न कोई लिखित निर्देश, न कोई सार्वजनिक बयान कि इस बर्बादी की भरपाई किससे वसूली जाएगी। विभाग चुप है और ठेकेदार भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं दिख रहा। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि गलती ठेकेदार की थी, तो विभाग ने पहली बार भुगतान क्यों किया ? और यदि विभाग की निगरानी में खामी थी, तो जवाबदेही किस पर तय होगी ?

जनता इस बात से नाराज़ है कि सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों खर्च किए जाते हैं, लेकिन जब खराबी सामने आती है, तो उसकी कीमत भी जनता की जेब से ही निकलती है। बिना स्पष्ट जवाब के काम का दोबारा शुरू होना सिस्टम की मजबूरी नहीं, लापरवाही की निशानी माना जा रहा है।

लोग पूछ रहे हैं...

* क्या पहली बार काम का तकनीकी ऑडिट हुआ था ?
* अगर नहीं, तो भुगतान क्यों किया गया?
* अगर हुआ था, तो खराबी के बावजूद पास किसने किया?
* और अब दोबारा होने वाले खर्च का हिसाब-किताब कौन देगा ?

जनता में आक्रोश, जवाबदेही की मांग

रविंद्रपुरी के जागरुक निवासी खुलकर कह रहे हैं कि यह काम सिर्फ खानापूर्ति है। शहर के सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों की योजनाएं बनती हैं, लेकिन न तो गुणवत्ता की जांच होती है, न समय पर निगरानी। काम खराब हो तो सबसे आसान बहाना गुणवत्ता में कमी। लेकिन इस कमी की कीमत कौन चुका रहा है... जनता!

लोगों का कहना है कि विकास के नाम पर सिर्फ बोर्ड लग जाते हैं, फोटो खिंच जाती है और फिर वही पुराना खेल ठेकेदार मनमर्जी से काम करे, विभाग आंख मूंद ले और पैसे सरकारी खजाने से निकलते रहें। अब देखना यह है कि इस प्रोजेक्ट में हुई गड़बड़ी पर कोई विभागीय जांच होती है या नहीं। क्या ठेकेदार से जवाब मांगा जाएगा ? या फिर यह मामला भी शहर की बाकी अधूरी और घटिया परियोजनाओं की तरह फाइलों में दब जाएगा ? फिलहाल रविंद्रपुरी के पिलरों पर टूटते हुए प्लास्टर सिर्फ दीवार का हिस्सा नहीं है, यह विभागीय लापरवाही और सिस्टम की पुरानी बीमारी का जीवंत प्रमाण है।