भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी को समर्पित है कार्तिक मास

- कार्तिक मास में दीपदान से आरोग्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति
- इस मास में तुलसी के पौधे को लगाना अत्यन्त पुण्यकारी
- धर्म उत्सव की विशेष शृंखला इसी मास से होती है प्रारंभ
राधेश्याम कमल
वाराणसी (रणभेरी): भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार हिंदू धर्म में कार्तिक मास को अत्यन्त पावन मास माना जाता है। धर्म उत्सव की विशेष शृंखला इसी मास से प्रारंभ होती है। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि कार्तिक मास के समान कोई दूसरा मास नहीं है। सतयुग के समान को युग नहीं है। वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है। गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है। स्कंद पुराण के अनुसार यह मास लक्ष्मी प्रदाता, रूद्र बुद्धिदायक व आरोग्य प्रदायक माना गया है। कार्तिक मास भगवान विष्णु एवं लक्ष्मीजी को समर्पित है। वर्ष के द्वादश मास में कार्तिक मास को ही धर्म-अर्थ- काम-मोक्ष को देने वाला माना गया है। इस बार कार्तिक मास की शुरुआत 8 अक्टूबर बुधवार से शुरू हो रही है। इसका समापन 5 नवम्बर को होगा। ज्योतिषविद् पं. विमल जैन के मुताबिक शरद पूर्णिमा से ही महालक्ष्मी की महिमा में उनकी आराधना के साथ दीपदान करके कार्तिक मास के यम-संयम नियम व धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं। कार्तिक मास में तुलसी जी एवं पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। इस मास में तुलसी के पौधों को घर पर लगाना अत्यन्त पुण्यकारी बताया गया है।
यमदेव को प्रसन्न करने के लिए आकाशदीप
कार्तिक मास में यमदेव को प्रसन्न करने के लिए आकाशदीप प्रज्जवलित किये जाते हैं। कार्तिक मास में एक माह तक आंवले वृक्ष का सिंचन एवं पूजन करना फलदायी रहता है। पीपल वृक्ष एवं तुलसी के पौधे की धूप-दप से पूजा करनी चाहिए। मास पर्यन्त श्रीहरि विष्णु को आंवला अर्पित करके उनका पूजन करने पर लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस माह में श्री विष्णु की महिमा में व्रत रखने से ग्रहजनित दोषों से मुक्ति मिलती है। साथ ही संकटों का निवारण होता है।
काली तिल एवं आंवला का चूर्ण का प्रयोग लाभकारी
पं. विमल जैन ने बताया कि इस मास में काली तिल एवं आंवले का चूर्ण लगा कर स्नान करने से समस्त पापों का शमन होता है। इस मास में नियम पूर्वक गंगा स्नान करके व्रत रखने से तीर्थ यात्रा के समान फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में स्नान-दान व पुण्य करने की काफी महिमा है। इस मास में सूर्य के दक्षिणायन होने से असुरिकाल माना जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस मास में स्नान ध्यान करके व्रत रख कर श्रीविष्णुजी का पूजन करना विशेष फलदायी रहता है। मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण-राधा का पूजन अर्चन करने से प्रभु की असीम कृपा बनी रहती है। इससे जीवन में सुख-समृद्धि का सुयोग बना रहता है।
कार्तिक मास के नियम
कार्तिक मास में व्रतकर्ता एवं साधक को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए। अपने परिवार के अलावा अन्यत्र किसी दूसरे का कुछ भी (अन्न) ग्रहण नहीं करना चाहिए। चना-मटर-उड़द-मूंग- मसूर, राई-लौकी-गाजर-बैंगन व बासी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। साथ ही लहसुन-प्याज व तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक मास की द्तिीया, सप्तमी, नवमी, दशमी, त्रयोदशी व अमावस्या तिथि के दिन तिल व आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वालों को केवल कार्तिक कृष्ण (नरक) चतुर्दशी के दिन ही तेल शरीर पर लगाना चाहिए। मास के अन्य दिनों में शरीर पर तेल लगाना वर्जित है। इस मास में स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
कार्तिक मास के प्रमुख व्रत एवं पर्व
10-अक्टूबर- संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत, करक चतुर्थी (करवा चौथ)
11- अक्टूबर- कोकिला पंचमी
13-अक्टूबर-अहोई अष्टमी व्रत, कालाष्टमी व्रत, राधा अष्टमी व्रत
17- अक्टूबर- रम्•ाा एकादशी व्रत
18-अक्टूबर- प्रदोष व्रत, धनत्रयोदशी (धनतेरस), धन्वन्तरि जयंती
19 अक्टूबर- मास शिवरात्रि व्रत
20- रूप नरक चतुर्दशी, हनुमान जयंती, छोटी दीपावली
21 अक्टूबर- दीपावली
22 अक्टूबर- गोवर्धन पूजा, अन्नकूट
23 अक्टूबर- भइया दूज, यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजन
25 अक्टूबर- वैनायिकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, सूर्य षष्ठी व्रत का प्रथम नियम-संयम
26 अक्टूबर- सूर्य षष्ठी व्रत का द्वितीय संयम (सौभाग्य पंचमी)
27 अक्टूबर- सूर्य षष्ठी (डाला छठ) व्रत का तृतीय संयम
28- अक्टूबर- सूर्य षष्ठी व्रत का पारण
30 अक्टूबर- दुर्गाष्टमी, गोपाष्टमी, अन्नपूर्णा अष्टमी व्रत
31 अक्टूबर- अक्षय नवमी व्रत
2 नवम्बर- देवहरि (प्रबोधिनी एकादशी)
3 नवम्बर-सोम प्रदोष व्रत
4- नवम्बर- वैकुंठ चतुर्दशी व्रत
5- नवम्बर- स्नान दान की कार्तिक पूर्णिमा, गुरू नानक जयंती, कार्तिक पूर्णिमा व्रत, देवदीपावली, कार्तिक मास के यम-नियम व्रत स्नान आदि धार्मिक अनुष्ठान की समाप्ति