काव्य-रचना

काव्य-रचना

     गौरैया रानी        

कहाँ चली गई हो फिर से आ जाओ ना, 
पहले वाला मुझको फिर से गीत सुनाओ ना , 
खाने- पीने को हम देंगे तुमको दाना- पानी
मान लो मेरी बात  आ जाओ गौरैया रानी ।

जैसे पहले तुम फूदक- फूदक कर आती थी, 
घर के आंगन और कमरे तक चली जाती थी, 
वैसे  ही अब फिर  से  तुम आ  जाओ ना, 
सूने पड़े हैं घर के कोने जरा उसे चहकाओ ना, 
ऐसे मत रुठो कि कल को रहे बस तेरी कहानी 
मान लो मेरी बात  आ जाओ गौरैया रानी । 

बचपन में तो तुम रोशनदान में मेरे रहती थी, 
साफ सफाई करती मम्मी तुमको कुछ न कहती थी, 
अचानक क्यों चली गई तुम ऐसे मुंह मोड़कर, 
बाग-बगीचे पेड़- पौधों तक को छोड़कर, 
चलो  माफ  करो हमसे हुई होगी नादानी
मान लो मेरी बात  आ जाओ गौरैया रानी ।

            - हेमराज वर्मा (शुभम्)