BHU: जनजातियों की परंपरा से आगे बहादुरी पर चर्चा

BHU: जनजातियों की परंपरा से आगे बहादुरी पर चर्चा

वाराणसी (रणभेरी): महामना की बगिया में गुरूवार को 'स्वंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान' नाम से भव्य कार्यक्रम का आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत किया गया। इस केंद्रीय राष्ट्रीय संगोष्ठी से जनजाति विद्रोहों के जरिये स्वतंत्र भारत की नीव रखने में जनजातियों की भूमिका पर विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया हैं। कार्यक्रम के पूर्व ही कुलपति के अगवानी में सभागार के बाहर छात्रों ने रंगोली बनायीं। साथ ही सभी विद्यार्थीगण जनजातिय परिधान में उपस्तिथ थे। इस कार्यक्रम के मद्देनजर जनजाति विद्रोहों पर आधारित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पहुंचे। बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया गया।

महामना की बगिया में डेढ़ बजे से जनजाति विद्रोहों में आदिवासी नायकों की भूमिका पर चर्चा शुरू हुई कार्यक्रम के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता भवन सभागार में भारी भीड़ का जुटान हुआ। यह मुख्य आयोजन साढ़े 3 बजे तक चलेगा। कार्यक्रम का उद्देश्य यहां उन बेखबर शहीदों को याद करना है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी जान गंवाई, मगर इतिहास के पन्नों में आजतक उन सभी वीरों को पर्याप्त जगह नहीं मिली सकी। कार्यक्रम में बताया गया कि जनजातियों के लोकगीतों और कथाओं में आज भी आजादी के वे नायक याद किए जाते हैं। इसी विषय को केंद्रित करके आज बीएचयू के स्वतंत्रता भवन सभागार में यह संवाद आयोजित हुआ है। संवाद के बाद जनजाति क्रांतिकारियों पर फिल्म भी दिखाई जाएगी। मंत्रियों, अधिकारियों और प्रोफेसरों की स्पीच और प्रदर्शनी की योजना भी बनायीं गयी हैं।

इन शहीदों पर हुआ संवाद

आज बीएचयू में जिन शहीदों पर चर्चा हो रही है, उन सभी में बीते दिनों चर्चा में रहे राष्ट्पति चुनाव के दौरान संथाल विद्रोह के सिद्धू-कान्हू, मानगढ़ के बलिदान, तिलका मांझी का पहड़िया आंदोलन, ??कोया-कोल विद्रोह, ????बेगड़ा भील, राणा पूंजा, जीवा महाद, काली बाई, नाना भाई खांट के बलिदान आदि है।

छात्रों के लिए विश्वविद्यालय की ओर से की गई यह अपील...

''अत्यंत हर्ष का विषय है कह हम सब इस वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव बना रहे हैं। यह एक स्वर्णिम अवसर है जब हम स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हुए संघर्षों और बलिदानों को याद करें। उन वीरगाधाओं का फिर से पाठ करें।''हम जानते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज का अविस्मरणीय योगदान रहा है। संगठित विद्रोहों के अलावा भी हजारों क्रांतिकारियों ने व्यक्तिगत बलिदान दिया है। स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के योगदान और जनजाति नायकों के बलिदान को युवा पीढ़ी के साथ साझा करने के लिए देश भर में 100 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में कार्यक्रम हो रहा है। इसकी थीम स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान है। आइए अपने विश्वविद्यालय में होने वाले इस अहम कार्यक्रम में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। अपने पूर्वजों की वीरगाधाओं को सुनें। उनके बलिदानों को जानें और खुद में समाज के लिए वैसी भावना विकसित करें।'' अभी ये कार्यक्रम चल रहा है।