काव्य-रचना
औघड़दानी
जो हैं,नागपास से अलंकृत
मोह-माया से वो हैं वंचित
कहे जाते हैं,करुणा के सागर
सबकी झोली भरते गागर
विष का जो करते हैं पान
दुनिया को देते ब्रह्मज्ञान
नीलकंठ हैं,वो कहलाते
सभी के मनोरथ सिद्ध कर जाते
औघड़दानी सब जग कहता
नगमस्तक हो,सब धीरज धर्ता।
शुभम त्रिवेदी