काव्य-रचना
नव वर्ष हमारा
यह पर्व मेरा प्रतिकार नहीं
पर यह हिंदू त्यौहार नहीं
नीज जननी की आन-मान
माटी को कहाँ भुलाएंगे?
नव वर्ष हमारा आने दो
कोयल भी गीत सुनाएंगे।
नीज भाषा पहचान मेरा
नीज धर्म सनातन मेरा है
दूजे के त्यौहारों तिथि को
कब तक हम दोहराएंगे
नव वर्ष हमारा आने दो
कोयल भी गीत सुनाएंगे।
आने दो नव वर्ष मेरा
खेतों में सरसों फुलेगा
कोपल आमों में होगा
हर वृक्ष हरा हो झूमेंगा
अन्न कोठरी आएगा
आँगन में उसे ओसाएँगे
नव वर्ष हमारा आने दो
कोयल भी गीत सुनाएंगे
ना ठंड घना कुहारा होगा
ना तपति धरा- ठुहरा होगा
सुंदर, सौम्य-शीतल झोंकों में
नव देवी को कुटीर बुलाएंगे
मित्र मंडली को लेकर हम
जवार में होली-चैता गाएंगे
नव वर्ष हमारा आने दो
कोयल भी गीत सुनाएंगे।।
- प्रवीण वशिष्ठ