काव्य-रचना
मेरी मंजिल अधूरी है
तुम मुझे मीले थे एक राही की तरह,
अब सफर भी पूरा होने को ही है।
तुम तो हासिल कर चुके हो ध्येय अपना,
अभी मेरी मंजिल अधूरी है।
इस मतलब की दुनिया मे भरोसे की चादर ओढ़ बैठा था,
गलत-सही का बोध हो कर के भी नासमझ बन बैठा था।
कुछ इरादे और वादें हैं खुद से,
सब्र की बांध न कभी टूटे मुझसे।
चलो अच्छा ही हुआ आये और चले गए,
मुझे सबक के पास छोड़ गए।
मैं उसको साथी बना कर निकल चला,
दुनिया के बेढंगे बातों से मैं टला।
तुम गलत मैं सही के बातों में अब मुझे नही पड़ना,
तुम सही हो सही ही रहना।
अब छोड़ो सब विस्मृत बातें,
ताजी तो हैं जरूर कुछ यादें।
लेकिन अब वापस आने का इरादा नहीं,
हर बार की तरह अब ये बात नहीं।
नही करना मुझे बाबू-सोना,
मैं अब खुश हूं सदा तुम भी रहना।
शुभम त्रिवेदी