काव्य-रचना

काव्य-रचना

   संस्कृति    
  मुझे गर्व है अपनी संस्कृति पर
जिसको सबने अपनाया है
संस्कार को लेकर साथ
पहले मानवता का नाम कमाया है
यहां प्यार, पर्व, उल्लास भी है 
यहा दुख, दर्द, उपहास भी है
यहां मानवता से लगी चोट भी है 
छल, कपट, दिखावा, सब 
बाहर मन साफ दिखाकर
बितर बसा खोट भी है
यहां सैनिक, फौजी बलिदान हुए
शिक्षा, स्वास्थ्य जगत सब बेईमान हुए
चंद सुख की लालच में
कितनो की सुख को छीना है
दुआ के मुख से बद्दुआ कमाकर
ऐसा भी कोई जीना जीना है
ये मानवता के रखवालों 
अपने अंतर मन को पहचानो
भेद भाव सब त्यागो तुम 
राष्ट्र हित में सर्वप्रथम
सबको अपना मानो तुम


अंकिता वर्मा