आखिर कहां जाकर रुकेगी बेलगाम होती महंगाई !
खाने-पीने का सामान और रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों के दाम बढ़ने से कट रही जेब
वाराणसी (रणभेरी): एक बड़ा मशहूर फिल्मी गीत है, 'सखी सैंया तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है.' इन दिनों लोगों के मन में उस गीत के बोल बार-बार आ रहे होंगे। महंगाई ने लोगों को इस कदर रुला रखा है, जिसका कोई जवाब ही नहीं है। महंगाई की मार आम आदमी के ऊपर लगातार पड़ रही है। खाद्य वस्तुओं से लेकर पेट्रोल-डीजल तक की कीमतें आसमान पर हैं। महंगाई की मार ने लोगों की जेब को काटना शुरू कर दिया है। खाने-पीने का सामान हो या रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें, सबके दाम बढ़ने शुरू हो चुके हैं। बात यहीं तक नहीं रुकती है। गाड़ियों, कंस्ट्रक्शन मैटेरियल ये सब भी महंगाई के घोड़े पर सवार हो गए हैं। इसका सीधा असर आमजन की जेब पर पड़ रहा है। हर सेक्टर में इनपुट कॉस्ट या रॉ मैटेरियल की कीमतें बढ़ी हैं। अब कंपनियों ने एक हद तक तो इस बढ़ोतरी को खुद झेलने की कोशिश की, लेकिन अब बात उनके बूते से भी बाहर हो गई है। नतीजा यह कि कंपनियां सामानों के दाम बढ़ाने लगी हैं, जिससे इनपुट कॉस्ट को ग्राहकों पर पास कर सकें।
महंगाई ने तोड़ी आमजन की कमर
बेलगाम महंगाई की मार ने निम्न व मध्यम वर्ग की कमर तोड़कर रख दी है। महंगाई की वजह से लोगों को दो वक्त की दाल रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया है। एक तरफ सब्जी, तेल, मसाले आटा और चावल सहित सभी खाद्य सामग्री की कीमतें लगातार ऊपर चढ़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ खाना पकाने में प्रयोग होने वाले रसोई गैस सिलेंडर के दामों में भी आग लग गई है। खाद्य पदार्थो की बढ़ती कीमतों से रसोई घर का बजट बिगड़ गया है। रसोई घर चलाने के लिए गत वर्ष की अपेक्षा डेढ़ गुना बजट बढ़ गया है। हालांकि कुछ लोग तो रसोई का दो गुना बजट बढ़ने का दावा कर रह हैं। कुल मिलाकर महंगाई ने गरीब से लेकर आम और उससे ऊपर के वर्ग के लोगों को रूला दिया है। महंगाई के दस दौर में आम लोगों को अपने परिवार का पालन पोषण करना मुश्किल हो रहा है।
सामान्य वर्ग के लिए महंगाई के दौर में परिवार का खर्चा उठाना असंभव होता जा रहा है। इसके कारण आम लोग परेशान हैं और चितित माहौल में तनावभरा जीवन जीने को मजबूर हैं। दरअसल रोजमर्रा की खासकर रसोई में इस्तेमाल होने वाले सामान की कीमतें कई गुना बढ़ने से रसोई घर चलाना महिलाओं के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है, लेकिन सरकार न तो महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए गंभीर है और न ही इस मुद्दे पर कोई आश्वासन देती दिखती है। नतीजन महंगाई आए दिन बेलगाम होती जा रही है। सरकार को आम जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए कड़े कदम उठाकर बढ़ती कीमतों पर लगाम लगानी चाहिए, क्योंकि जीने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत है, अगर इस तरह से इन रोजमर्रा की जरूरतों की कीमतें बढ़ती गई तो इनसे भी लोग वंचित हो जाएंगे।
खाने के तेल की कीमतों में भी उछाल
खाने के तेल के दाम भी आसमान पर हैं और फिलहाल उससे राहत मिलने की संभावना कम ही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोयाबीन, सनफ्लावर और पाम तेल के दाम बढ़ने से घरेलू बाजार में भी इनकी कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है। गौरतलब है कि भारत अपनी जरूरत का 70 फीसदी खाद्य तेल इंपोर्ट करता है। बता दें कि केंद्र सरकार ने पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल की कच्ची किस्मों पर 31 मार्च 2022 तक के लिए सीमा शुल्क में कटौती की हुई थी। साथ ही सरकार ने इसके ऊपर लगाए गए कृषि उपकर में भी कटौती कर दी है। जानकारों का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
घरेलू गैस सिलेंडर फिर हुआ महंगा
इसी बीच महंगाई से जूझ रहे लोगों के लिए एक और बुरी खबर है। एक बार फिर एलपीजी गैस की कीमतों में उछाल आया है। गुरुवार को रसोई गैस की कीमतों में एक बार फिर इजाफा हुआ है। मिली जानकारी के अनुसार, आज से घरेलू एलपीजी सिलिंडर 3.50 रुपये महंगा हो गया, जबकि कमर्शियल एलपीजी सिलिंडर में भी 8 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। रसोई गैर की कीमतों में इजाफे के बाद अब घरेलू सिलेंडर की कीमत देश में लगभग सभी जगहों पर प्रति सिलेंडर 1 हजार रुपए के पार पहुंच गई है। घरेलू एलपीजी के अलावा कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर भी 8 रुपये महंगा हुआ है। बता दें कि बीते 7 मई को कमर्शियल गैस सिलेंडर 10 रुपये सस्ता हुआ था। गौरलतब है कि इससे पहले 7 मई को घरेलू गैस सिलेंडर में 50 रुपये का इजाफा हुआ था। इसके बाद घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 999.50 रुपये तक पहुंच गई थी। वहीं इससे पहले कॉमर्शियल गैस सिलेंडर के दाम में 102 रुपये की वृद्धि की गई थी।
कोरोना महामारी से चरमराई अर्थव्यवस्था
बढ़ती महंगाई पर रोक लगाना लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल का चुनावी मुद्दा रहा है, यह बात अलग है कि विषय किसी सारगर्भित समाधान की बजाय अपनी चर्चा को लेकर अधिक चिंचित रहा। विगत वर्षों पर दृष्टिपात करें तो महंगाई दरों में लगभग प्रतिवर्ष बढ़ौतरी दर्ज की गई, किंतु महंगाई के ताजा आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो वर्षों से कीमतों में आया आकस्मिक उछाल महंगाई के समस्त रिकार्ड ध्वस्त कर चुका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना महामारी की पहली व दूसरी लहर का आना अर्थव्यवस्थाओं के चरमराने का मुख्य कारण बना। महामारी की इस उठापटक में जहां बेरोजगारी व मंदी का प्रतिशत बढ़ा, वहीं निरंतर बढ़ती महंगाई ने भी आम आदमी का जीना दूभर कर दिया। एक ओर कोरोना के दंश से संकुचित अथवा विलुप्त हुए आय के स्रोत तथा दूसरी ओर दैनिक उपभोग की वस्तुओं के निरंतर बढ़ते दाम, दो पाटों की इस चक्की ने आम आदमी को बुरी तरह पीसकर रख दिया है। विगत कुछ माह में न केवल खाद्य पदार्थों के भाव दोगुने-चौगुने हुए, बल्कि ईंधन के मूल्यों में भी बेतहाशा बढ़ौतरी दर्ज की गई। दूध, तेल आदि के दामों ने घरेलू बजट हिलाकर रख दिया है। अकेले ईंधन की बात करें तो मई माह में इसमें 37.5 फीसदी महंगाई दर्ज की गई।
मौजूदा ह्यथोक मूल्य बढ़ौतरी सूचकांकह्ण के अनुसार मई माह में थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई 12.94 फीसदी के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंची। बढ़े हुए थोक भावों का सीधा असर वस्तुओं के खुदरा दामों पर भी पड़ा। खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित लक्ष्य से 6.30 फीसदी तक अपनी बढ़त जमाकर कहीं आगे रही। जून में भी कुछ कमी आने के दावों के बीच थोक महंगाई 12.07 प्रतिशत बनी हुई है। चिंता का विषय है केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा इस दिशा में अब तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किया जाना। संभवत: आवश्यक वस्तु अधिनियम की निष्क्रियता से पनपी जमाखोरी की प्रवृत्ति ने महंगाई दर में इजाफा किया, किंतु दैनिक उपभोग की वस्तुओं के बढ़ते दामों का मुख्य कारण पैट्रोल-डीजल के आसमान छूते भाव हैं।