वाराणसी की पहचान पर संकट !
*आज ही के दिन काशी को मिला था वाराणसी का नाम
वाराणसी (रणभेरी)। आज ही के दिन 24 मई 1956 को आधिकारिक तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार ने पुराणो से भी प्राचीन नगरी को को एक स्थाई तौर पर वाराणसी नाम दिया। अपनी धार्मिक सांस्कृतिक एवं वेद उपनिषद की शिक्षा के लिए प्रख्यात बाबा विश्वनाथ द्वारा बसाई इस नगरी में संगीत, साहित्य, कला, विज्ञान, वेद उपनिषद की पढ़ाई होती है। साथ यह शहर अपने आप में एक लघु भारत भी है यहां पर भारत के हर कोने के रहने वाले लोग एक मोहल्ले के रूप में काशी में स्थापित है और अपने रहन-सहन संस्कृति से अपने राज्य की झलक भी सहजे हुए हैं लेकिन इन सबके बावजूद आज वाराणसी की पहचान असि व वरुणा नदी अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। वरूणा नदी तो अभी कुछ बची-खूची भी है लेकिन आसि नदी तो खत्म होने के कारण पर खड़ी है और यही स्थिति रही तो आसि नदी कुछ ही वर्षों में समाप्त भी हो सकती है । वही वरूणा नदी का भी है यह नदी भी धीरे-धीरे अंतिम स्थिति की ओर बढ़ रही है। आप कल्पना करिए की जिस शहर का नाम आसि व वरूणा नदी के नाम पर हो और दोनों नदियां समाप्ति की ओर हो तो इस शहर के नाम पर ही संकट उत्पन्न हो जाएगा। दोनों नदियों की सुधि लेने वाला भी कोई दिखाई नहीं दे रहा है। कभी एनजीटी व न्यायपालिका द्वारा कभी-कभी इसकी खोज खबर ली जाती है लेकिन वह भी सिर्फ अखबार के पन्नों पर ही सिमट कर रह जाता है। आज ना तो कोई इन नदियों को लेकर कोई बोलने वाला है ना तो उनके लिए कोई आंदोलन करने वाला है। असि नदी को तो पाटने का काम भी चल रहा है रात को ट्रैक्टर ट्राली में मलवा भरकर उसके किनारो पर फेंका जा रहा है और धीरे-धीरे नदी को पाटा जा रहा है। लोगों का कहना है कि आधी रात के बाद लोग ट्रैक्टर से मलवा लेकर आते हैं और नदी किनारे डाल कर चले जाते हैं उनका मकसद आसि नदी के किनारे खाली पड़ी जमीनों को पाट कर उसे पर इमारत खड़ी करना है।