काशी में तुलसी घाट पर बेटियों का दंगल: 478 साल पुरानी परंपरा में नया मोड़, अब अखाड़े में लड़कियां भी दिखा रहीं दमखम

वाराणसी (रणभेरी): जहां कभी गोस्वामी तुलसीदास रियाज किया करते थे, वहां अब उसी ऐतिहासिक तुलसी घाट स्थित स्वामीनाथ अखाड़े में काशी की बेटियां पहलवानी का दमखम दिखा रही हैं। नागपंचमी के मौके पर यहां पारंपरिक दंगल का आयोजन हुआ, जिसमें लड़कों के साथ-साथ लड़कियों ने भी अखाड़े में जोर आजमाया। 478 सालों से चली आ रही पुरुषों की पहलवानी परंपरा अब बदल रही है। पिछले कुछ वर्षों से बेटियों के लिए अखाड़े के द्वार खोले गए हैं और अब यहां से कई लड़कियां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच चुकी हैं। नागपंचमी के दिन संकट मोचन मंदिर के महंत विशम्भर नाथ मिश्र ने हनुमान पूजन के बाद विशेष दंगल की शुरुआत की।
इस अवसर पर नीदरलैंड से आए पहलवान हर्बर्ट शांति ने भी जोड़ी-गद्दा फेरकर लोगों को देशी कुश्ती का विदेशी दीदार कराया। उन्होंने बताया कि वे नीदरलैंड में भी भारतीय स्टाइल की पहलवानी सिखाते हैं और उन्हें यहां की मिट्टी की खुशबू और दांव-पेंच बेहद पसंद हैं।
स्वामीनाथ अखाड़े की पहलवान कशिश बताती हैं कि जब से लड़कियों को अखाड़े में आने की इजाज़त मिली है, तब से वह पहलवानी कर रही हैं। "पहलवानी मेरे DNA में है। यहां पट, धोबी पछाड़ और कलाजंग जैसे दांव सीखे हैं। मुझे गर्व है कि मैं इस परंपरा की पहली कड़ी बनी।" उनके साथ-साथ लक्ष्मी, पलक, वसुंधरा, आंचल और साक्षी जैसी कई लड़कियां भी अब अलग-अलग प्रतियोगिताओं में जीत का परचम लहरा चुकी हैं।
महंत विशम्भर नाथ मिश्र बताते हैं कि इस अखाड़े की स्थापना स्वयं गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। उस दौर में शरारती तत्वों से परेशान होकर तुलसीदास जी ने पहलवानों को बुलाकर अखाड़ा बनवाया ताकि वे शांतिपूर्वक रामचरितमानस की रचना कर सकें। तब से लेकर अब तक यह अखाड़ा लगातार सक्रिय है और यहां जाति-धर्म से ऊपर उठकर हर किसी को मौका दिया गया है।
महंत की माता ने सबसे पहले महिलाओं को अखाड़े में लाने की बात कही थी, लेकिन परंपरा को लेकर कुछ लोगों में आपत्ति थी। हालांकि विचार-विमर्श के बाद समाज की सोच बदली और बेटियों को भी अखाड़े में कदम रखने की इजाजत दी गई। स्वामीनाथ अखाड़े से हर साल कई पहलवान स्पोर्ट्स कोटे के तहत सेना और सरकारी नौकरियों में चयनित होते हैं। एक समय 'भारत केसरी' जैसे खिताब जीतने वाले पहलवान यहीं से निकले हैं। अब यह परंपरा बेटियों के दम से और मजबूत होती दिख रही है।
नागपंचमी के दिन स्वामीनाथ अखाड़े में महिला पहलवानों को लड़ाने की नई परंपरा की शुरुआत हुई है। इस आंकड़े में पिछले 7 वर्षों से लड़कियां दंगल लड़ रही हैं। इस अखाड़े से निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने दांव आजमा चुकी हैं। काशी में तुलसी घाट पर अखाड़े में सैकड़ों वर्ष बाद महिलाओं को एंट्री मिली थी। गौरतलब है कि इस अखाड़े में पहले पुरुष पहलवानी करते हुए दिखते थे।
मेरे DNA में है पहलवानी अखाड़े की पहलवान
कशिश बताती हैं -मुझे यहां लड़ना काफी पसंद है। पहलवानी मेरे DNA में है। जब से अखाड़े में लड़कियों की एंट्री हुई है, तब से मैं यहां पहलवानी कर रहीं हूं। पट धोबी पछाड़, कलाजंग दांव जैसे कई दांव-पेंच यहां पर सीखे हैं। मुझे खुशी है कि यह बनारस का पहला अखाड़ा है जहां लड़कियां कुश्ती लड़ती हैं। मैं सौभाग्यशाली हूं कि इसकी शुरुआत मुझसे ही हुई थी। कशिश के साथ ही आज अखाड़े के रिंग में अपना दमखम दिखाने के लिए लक्ष्मी,पलक, वसुंधरा, खुशी, साक्षी,माला,आंचल, रिया आदि का भी कहना है कि वे तीन साल में कई जगहों पर अपने परचम लहरा चुकी हैं।
आइए अब जानते हैं अखाड़े के बारे में...
संकट मोचन मंदिर के महंत विशम्भर नाथ का कहना है कि अखाड़े की स्थापना रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। इस अखाड़े में कभी भी जाति और धर्म का भेदभाव नहीं किया गया। बल्कि सभी धर्म के लोगों को पुष्टि करने का मौका मिलता था। विडंबना यह थी कि अखाड़े में महिला कुश्ती नहीं कर सकती थी। संकट मोचन के महंत की मां ने तुलसी अखाड़े में महिलाओं के कुश्ती लड़ने की बात कही, लेकिन लोगों को यह लगा कि जो परंपरा चलती आ रही है, इससे उसको ठेस पहुंचेगी और लोग नाराज होंगे। हालांकि सबके साथ बैठकर बात करने से महिलाओं को भी इस अखाड़े में उतारने की अनुमति दी गई।
सुबह के छह बजते ही तुलसी घाट के पीछे अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास में पहलवानों का जुटना शुरू हो जाता है। यह साधारण अखाड़ा नहीं है। इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। बीते करीब 450 वर्षों से लगातार यहां पहलवान प्रैक्टिस कर रहे हैं। इस अखाड़ा स्वामीनाथ के नाम से भी जाना जाता है। फिलहाल यहां सौ से अधिक पहलवान आते हैं। एक समय भारत केसरी, उत्तर प्रदेश केसरी जैसे पहलवान देने वाले इस अखाड़े से आज हर वर्ष दो या चार पहलवान स्पोर्ट्स कोटे से सेना और सरकारी महकमों में नौकरी पाते हैं। बीते वर्षों से लड़कियां भी कुश्ती सीखने आती हैं।
इस अखाड़े को लेकर तमाम किस्से हैं। कहा जाता है कि जब गोस्वामी तुलसीदास घाट पर बैठकर रामचरित मानस की रचना कर रहे थे, तभी उन्होंने ये अखाड़ा बनवाया था। दरअसल, वे जब रचना करते थे तो कुछ दबंग और शरारती तत्व उनका सामान लेकर भाग जाते थे। काफी समझाने और मिन्नत के बाद जब वे नहीं माने तो तुलसीदास जी ने वहां अखाड़ा बनवा दिया। पहलवान कुश्ती करते थे। तुलसीदास जी भी इस अखाड़े में रियाज मारते (कुश्ती लड़ना) थे। इसका असर ये हुआ कि पहलवानों के डर से दबंग और शरारती तत्वों का वहां आना बंद हो गया और तुलसीदास निर्विघ्न अपने काम में लग गए।