कुतुब मीनार पर फैसला सुरक्षित, जाने ! कब आयेगा आदेश ?
(रणभेरी): कुतुब मीनार मामले में 27 हिंदू और जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार के संबंध में दायर एक अपील पर मंगलवार को साकेत कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में फैसला 9 जून को तारीख तय की है। पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अदालत में एक हलफनामा दायर कर यह भी बताया कि कुतुब मीनार एक निर्जीव इमारत है जहां किसी को भी पूजा-पाठ या किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि करने का कानूनी हक नहीं है।
कोर्ट ने मामले पर कहा है कि जब 800 सालों से देवता बिना पूजा के हैं तो उन्हें वैसे ही रहने दे। कोर्ट ने हिंदू पक्ष से सवाल करते हुए पूछा, क्या बिना जांच के कैरेक्टर पता लगाया जा सकता है? हिंदू पक्ष ने जवाब देते हुए कहा, जांच करवा कर देख सकते हैं। वहीं, इस पर ASI ने कहा, कोर्ट को तथ्यों और रिकॉर्ड को देखना चाहिए। कोर्ट में हिंदू पक्ष ने कहा कि 27 मंदिरों को ध्वस्त करके कुतुब मीनार की मस्जिद बनाई गई थी वहां हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिलना चाहिए। हिंदू पक्ष की दलीलों के बीच कोर्ट (एडीजे निखिल चोपड़ा) ने कहा कि 800 सालों से अगर वहां देवता बिना पूजा के भी वास कर रहे हैं तो उनको ऐसे ही रहने दिया जा सकता है।
अदालत ने आगे कहा कि, प्रश्न ये है कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है, यह सांविधानिक है या अन्य कोई अधिकार है? मूर्ति का होना विवाद का विषय नहीं है। यहां प्रश्न पूजा के अधिकार को लेकर है। मेरा सवाल है कि कौन सा कानून इस अधिकार का समर्थन करता है? हम यहां ये बहस नहीं कर रहे कि वहां कोई मूर्ति है या नहीं। हम यहां सिविल जज के आदेश के खिलाफ बात कर रहे हैं।अदालत ने आगे कहा, यह अपील गुण-दोष के आधार पर नहीं है। यहां एकमात्र सवाल ये है कि क्या याचिकाकर्ता को किसी कानूनी अधिकार से वंचित किया गया है? इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि हां संवैधानिक अधिकार को नकारा गया है। कोर्ट ने पूछा कैसे तो याची ने कहा आर्टिकल 25 के तहत। इस पर अदालत ने पूछा कि आपका मतलब है कि पूजा का अधिकार मौलिक अधिकार है? याचिकाकर्ता ने आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि, भारत में 1000 साल पुराने कई मंदिर हैं, इसी तरह यहां भी पूजा की जा सकती है। निचली अदालत ने मेरे अधिकार का फैसला नहीं किया है। उनका फैसला गलत है।