वाराणसी के ASG Eye Hospital की लापरवाही ने छीन ली मासूम ज़िंदगी, कोर्ट ने FIR का दिया आदेश, अस्पताल की लापरवाही पर गंभीर सवाल
वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी के ASG Eye Hospital में 7 वर्षीय अनाया रिज़वान की रेटिना सर्जरी के दौरान हुई मौत ने न केवल एक परिवार को तबाह कर दिया, बल्कि शहर के स्वास्थ्य ढाँचे और निजी अस्पतालों की जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना अब एक साधारण चिकित्सकीय विवाद से आगे बढ़कर कानूनी कार्रवाई के दायरे में पहुँच चुकी है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, वाराणसी ने धारा 173(4) बी.एन.एस.एस. के तहत थाना भेलूपुर को एफआईआर दर्ज कर निष्पक्ष विवेचना शुरू करने का निर्देश दिया है। अदालत के इस आदेश के बाद पूरे शहर में हलचल तेज हो गई है, क्योंकि एक बच्ची की मौत ने अस्पताल प्रशासन के उस भरोसे को चुनौती दी है जिस पर आम लोग अपनी जान तक सौंपते आए हैं।
14 अक्टूबर 2025 की सुबह अनाया, अपनी मां का हाथ पकड़े, अस्पताल की चमचमाती गलियों में कदम रखती है। वह पूरी तरह स्वस्थ और सामान्य थी। उसे कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। केवल आंख की एक साधारण समस्या के लिए रेटिना सर्जरी तय की गई थी। मां ने डॉक्टरों से कई बार एक ही सवाल पूछा कि क्या यह सर्जरी बिल्कुल सुरक्षित है। हर बार डॉक्टरों की ओर से आश्वासन मिला कि यह एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है और इसमें किसी भी तरह के खतरे की गुंजाइश नहीं होती। लेकिन वही “सामान्य प्रक्रिया” कैसे एक छोटी बच्ची की जान ले गई यह सवाल आज भी उसके माता-पिता के दिल में चुभ रहा है।
अदालत में प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार, एनेस्थीसिया देने के बाद अनाया की हालत अचानक बिगड़ गई। अस्पताल की ओर से न तो परिवार को वास्तविक स्थिति बताई गई और न ही इस बात का स्पष्ट कारण दिया गया कि बच्ची को तत्काल दूसरे अस्पताल क्यों भेजा जा रहा है। जिस बच्ची को सुबह घर से मुस्कुराते हुए लाया गया था, वह कुछ घंटों के भीतर अस्पताल की लापरवाही की भेंट चढ़ गई। अनाया को जल्दबाज़ी में महमूरगंज स्थित Matcare Hospital ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस खबर ने परिवार को अंदर तक तोड़ दिया। अस्पताल के बाहर खड़े परिजनों के बीच सिर्फ एक सवाल गूंज रहा था आखिर गलती कहाँ हुई?

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में इस पूरे प्रकरण की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा कि एनेस्थीसिया की मात्रा, ऑक्सीजन सप्लाई और मॉनिटरिंग में स्पष्ट लापरवाही के संकेत मिले हैं। अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि बच्ची को समय पर रेसुसिटेशन नहीं दिया गया और पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल भी मानक प्रोटोकॉल के अनुरूप नहीं की गई। अदालत का यह भी कहना है कि यदि अस्पताल द्वारा बुनियादी चिकित्सकीय प्रक्रियाओं का पालन किया गया होता, तो अनाया की जान बच सकती थी। यह टिप्पणी अस्पताल के पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करने के लिए काफी है।

सबसे बड़ी हैरानी की बात यह रही कि अस्पताल ने न तो एनेस्थीसिया चार्ट उपलब्ध कराया, न ICU रिकॉर्ड और न ही ऑपरेशन नोट्स। यहां तक कि ऑपरेशन थिएटर के CCTV फुटेज भी परिवार को नहीं दिए गए। इससे परिवार का शक और गहरा हो गया कि कहीं अस्पताल कुछ महत्वपूर्ण तथ्य छिपा तो नहीं रहा। डॉक्टरों के बयान भी एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे। कहीं बताया गया कि बच्ची की हालत धीरे-धीरे बिगड़ी, तो कहीं कहा गया कि एनेस्थीसिया देने के तुरंत बाद स्थिति खराब हुई। इस विरोधाभास ने अदालत का ध्यान आकर्षित किया और अदालत ने इसे स्पष्ट रूप से “जानबूझकर की गई चूक” की श्रेणी में रखा। अदालत का मानना है कि सच्चाई सामने आने से रोकने के लिए अस्पताल द्वारा महत्वपूर्ण रिकॉर्ड छिपाए गए, जो कि एक गंभीर आपराधिक कृत्य है।

परिवार ने अदालत से यह भी मांग की है कि जांच की पारदर्शिता और साक्ष्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनके अधिवक्ता शशांक शेखर त्रिपाठी को स्वतंत्र सहयोगी यानी Independent Observer के रूप में शामिल किया जाए। परिवार का तर्क है कि अस्पताल के व्यवहार को देखते हुए निष्पक्ष और पारदर्शी जांच तभी संभव है जब कोई स्वतंत्र व्यक्ति जांच प्रक्रिया पर निगरानी रखे। परिवार की ओर से अनाया की मां ने अदालत में कहा कि उसकी बेटी अब कभी वापस नहीं आएगी, लेकिन वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि किसी और मां की गोद इस तरह की लापरवाही के कारण खाली न हो। उसका दर्द अदालत कक्ष में मौजूद हर व्यक्ति को महसूस हुआ।
यह मामला सिर्फ एक बच्ची की मौत का नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की संवेदनहीनता और अस्पतालों की जिम्मेदारी पर उठे गंभीर सवालों का भी प्रतिनिधित्व करता है। घटना के बाद ASG Eye Hospital के खिलाफ लोगों में व्यापक आक्रोश है। जो अस्पताल रेटिना सर्जरी जैसी प्रक्रियाओं को अपनी विशेषज्ञता बताता रहा, वही अस्पताल बुनियादी सुरक्षा मानकों का पालन करने में विफल रहा। इस घटना ने यह भी उजागर किया कि शहर के कई निजी अस्पतालों में जरूरी मॉनिटरिंग सिस्टम और प्रशिक्षित स्टाफ की कमी के कारण मरीजों की जान जोखिम में पड़ रही है।
अनाया का कमरा आज भी वैसा ही है। उसके छोटे-छोटे खिलौने, ड्राइंग बुक, रंगीन पेंसिलें और स्कूल की कॉपियां जस की तस रखी हैं। परिजनों को लगता है कि जैसे वह अभी दरवाजे से भागती हुई आएगी और कहेगी, “मम्मी, मैं ठीक हूँ।” लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा। परिवार के पास अब एक ही उम्मीद बची है न्याय। अदालत का FIR दर्ज करने का आदेश अनाया के माता-पिता को यह विश्वास दिलाता है कि उनकी बेटी के साथ जो हुआ, उसकी सच्चाई सामने आएगी और दोषियों को सजा मिलेगी।
अदालत का यह आदेश सिर्फ कानूनी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक ऐसे दर्द की स्वीकृति भी है जिससे एक पूरा परिवार आज भी गुजर रहा है। अनाया की मौत ने यह साबित कर दिया है कि चिकित्सा जगत में लापरवाही केवल एक गलती नहीं, बल्कि कई बार जीवन और मृत्यु के बीच की सबसे बड़ी खाई बन जाती है। अब यह देखना बाकी है कि पुलिस जांच किस दिशा में आगे बढ़ती है और क्या इस मामले से शहर के अस्पतालों में सुधार की कोई नई शुरुआत होती है या नहीं।











