किंवदंतियों से भी प्राचीन है काशी का इतिहास

 किंवदंतियों से भी प्राचीन है काशी का इतिहास

वाराणसी (रणभेरी सं.)। आज वो दिन है जब सब देवतागण भगवान शिव से मिलने उनके घर काशी में उतरेंगे। ये वजह है बनारस में भव्य देव दीपावली मनाने के पीछे। मान्यता है कि काशी भगवान शिव का घर है। हजारों साल पहले जब उन्होंने देवताओं को बचाने के लिए त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया तो सभी देवगण भगवान शिव से मिलने काशी नगरी पहुंचे। यहां देवताओं ने गंगा स्नान किया और दीपदान किया। तभी से काशी इस दुनिया में अपने तरह के इकलौते और दिव्य पर्व का गवाह बनती आ रही है। काशी यानी बनारस की प्राचीनता, शहर को लेकर कौतूहल, इसका मिजाज, यहां का रहन-सहन हमेशा से ही दुनिया की तमाम नजरों को आकर्षित करता रहा है। बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एक जगह कर दिया जाए तो उस संग्रह से भी दोगुनी प्राचीन है। ये बातें अमेरिका के महान लेखकों में शुमार मार्क ट्वेन ने अपनी किताब ट्रवेलॉग फॉलोइंग द इक्वेटर में लिखी। बनारस की प्राचीनता, उसकी दिव्यता और उसके मस्तमौलापन पर ना जाने कितना कुछ लिखा गया है। उन सबकी प्रतिध्वनि इन पंक्तियों में आती है। बनारस अपने आप में एक अलग दुनिया है। एक अलग संस्कृति है। काशी का जिक्र वेदों से लेकर पुराणों, महाकाव्य महाभारत और रामायण में मिलता है

ऋग्वेद से लेकर महाभारत में काशी का जिक्र

काशी की प्राचीनता को लेकर ना उस शहर को किसी प्रमाण की जरूरत रही, ना ही वहां के बाशिंदों को। उन्हें पता है कि ऋग्वेद से लेकर पुराणों में काशी आती है। रामायण और महाभारत काल में काशी देवताओं का निवास स्थान बनी। काशी ऋग्वेद के तीसरे, छठे और सातवें मंडल में आती है। यहां श्लोकों में काशी को 'प्रकाश का शहर' कहा गया है। ऋग्वेद से आगे बढ़ते हैं तो काशी पहुंचाती है स्कंद पुराण में। इसमें काशी खंड नाम से पूरा एक हिस्सा है। मत्स्य और शिव पुराण में वरुणा और असी नदी से मिलकर वाराणसी नाम पड़ने का जिक्र है। इससे आगे बढ़ने पर उपनिषदों के साथ ही रामायण और महाभारत में भी काशी का उल्लेख है। 

जैनऔर बौद्ध धर्म की भी पावन धरा है काशी

काशी जैन धर्म के चार तीर्थंकरों की जन्मस्थली है। तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभु, श्रेयांशनाथ और पार्श्वनाथ का जन्म काशी की धरती पर हुआ। ये काशी ही है जहां महात्मा बुद्ध छठी शताब्दी ईसापूर्व में आए और सारनाथ में पांच शिष्यों के सामने अपना पहला उपदेश दिया। यही बाद में बौद्ध धर्म की स्थापना का आधार बना। जिस जगह पर महात्मा बुद्ध ने उपदेश दिया आज भी वह सारनाथ में सुरक्षित है। जिस पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की और ज्ञान प्राप्त किया वो बोधि वृक्ष भी उस प्रांगण में है। 

मध्य और आधुनिक काल में भी काशी विद्वानों का कौशल स्थल रही

मध्यकाल यानी 10वीं सदी के बाद भी काशी विद्वानों की धरा बनी रही। यहीं लमही में 15वीं सदी में संत कबीर का जन्म हुआ। वह काशी के घाटों पर पले बढ़े। यहीं उन्होंने अपनी पवित्र वाणी से लोगों को सही मार्ग दिखाया। उनके जीवनकाल में उन्होंने जो कुछ कहा वो आज बीजक नाम के ग्रंथ में असर है। वो आज भी उतना ही प्रासंगिक और मारक है। वो काशी ही है जहां 16वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस जैसा ग्रंथ लिखा। हनुमान चालीसा सहित कई कालजयी ग्रंथों की रचना उन्होंने काशी में रहकर की। कर्नाटक के महान संगीज्ञ हुए मुत्तुस्वामी दीक्षितार यहां संगीत सीखने आए और हिंदुस्तानी राग को शिखर पर पहुंचाया। सिख गुरु, गुरुनानक देव 1506 में काशी आए और मंत्रमुग्ध हो गए। आधुनिक काल में यह हिंदी के महान लेखकों और कवियों का गढ़ बनी। इसमें प्रेमचंद से लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल और जयशंकर प्रसाद जैसे लेखक और कवि शामिल हैं।