खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी

खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी

अंग्रेजों से लड़ने के लिए नारी सेना बनाकर प्रस्तुत की थी महिला सशक्तिकरण की नजीर

वाराणसी (रणभेरी सं.)। आज पूरा देश महान वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती मना रहा है। 19 नवंबर 1835 को जन्मी महारानी लक्ष्मीबाई पराक्रम और शौर्य की मिसाल हैं। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया था। पर्दा प्रथा और सती प्रथा के उस दौर में महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए नारी सेना बनाकर महिला सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत किया था। यह महारानी लक्ष्मीबाई सहित देश के महान स्वतंत्रता सैनानियों के बलिदान का ही नतीजा है कि आगे चलकर हमारे देश को आजादी मिली।
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 को बनारस में मोरोपंत तांबे के यहां हुआ था। वह पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में कार्य करते थे। मोरोपंत ने अपनी बेटी का नाम मणिकर्णिका रखा था और वह प्यार से उन्हें मनु कहकर बुलाते थे।

भदैनी में रहता था मनु का परिवार

काशी के धार्मिक महत्व के कारण पेशवाओं को यहां से काफी लगाव था, जो कि अक्सर यहां आते रहते थे। अपने बनारस प्रवास के दौरान वे गंगा उस पार रेती में घुड़सवारी और तलवारबाजी का अभ्यास भी किया करते थे। अस्सी-भदैनी में पेशवा का किला भी था। रानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली से जुड़े जागृति फाउंडेशन के महसचिव रामयश मिश्र ने बताया कि लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ गंगा के उस पार जाती थीं और घुड़सवारी व तलवारबाजी का अभ्यास देखती थीं। बचपन में पड़ी युद्धकला की नींव भविष्य में उनके बहुत काम आई।

काशी की मनु ने पेशवा के बच्चों को सिखाया तीर तलवार

बचपन में ही शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा लेने के दौरान लोग उन्हेंं प्यार से छबीली के नाम से भी पुकारने लगे। पेशवा बाजीराव के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे। मनु भी उन्हीं बच्चों संग पढ?े लगीं। मनु ने पेशवा के बच्चों के साथ ही तीर-तलवार तथा बंदूक से निशाना लगाना सीखा। उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हो गया और वह झांसी की रानी बनी और उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया।  महारानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी में निपुर्ण थीं। साल 1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन चार महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। ऐसे में राजा गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई ने एक दत्तक पुत्र को गोद लिया। साल 1953 में राजा गंगाधर राव का निधन हो गया।

गंगा स्नान पर करती थी विश्वनाथ की पूजा

रानी लक्ष्मी बाई गंगा किनारे रहती थी इसलिए वह वाराणसी के गंगा घाट पर स्नान करने के बाद बाबा विश्वनाथ का प्रतिदिन दर्शन पूजन करती थी उसके बाद वह भागवत गीता और महाभारत जैसी कथाओं को भी पढ़ा और सुना करती थी इसलिए बचपन से ही उन्हें देश की स्वतंत्रता को लेकर एक अलग ही सोच थी। उन्होंने कहा कि जब काशी की मनु जब अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी तभी वह समझ गये थे कि अब वह भारत में अधिक दिन तक नहीं रह पायेंगे।

जन्मस्थल के दीवारें गा रहीं वीरांगना की गाथा

रानी लक्ष्मी बाई की जन्मस्थली भदैनी की दीवारें वीरांगना की गाथाएं बता रही हैं। दीवारों पर बनी कलाकृतियों में उनके जन्म से लेकर उनके शहीद दिवस तक के जीवन चक्र को उकेरा गया है। इससे पर्यटकों को वीरांगना की जीवन गाथा आसानी से मालूम हो जाती है। 19 नवंबर 1835 को जन्मी रानी लक्ष्मी बाई का जीवन काल 18 जून 1858 तक रहा। इस छोटी से आयु में उन्होंने अंग्रेजों को धूल चटा दिया था। उनके बारे में लोग सहज ही जान सकें इसके लिए भदैनी स्थित मंदिर में लो रिलीफ कला पर आधारित जीवन चरित्र बनाया गया है।

अंग्रेजों ने दिया धोखा

राजा गंगाधर राव के निधन के बाद अंग्रेजों ने महारानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को झाँसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला खाली करने के लिए कहा। हालाँकि रानी से इससे इंकार कर दिया, जिसके बाद अंग्रेजों ने झाँसी पर हमला बोल दिया।

युद्ध के मैदान दिखाया शौर्य

अंग्रेजों के हमले के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए नारी सेना का गठन किया। उन्होंने खुद महिलाओं को तलवारबाजी का प्रशिक्षण भी दिया। इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने कई दिनों से तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और झांसी की रक्षा की। हालाँकि एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें झाँसी को छोड़ना पड़ा था।

ग्वालियर पर किया कब्जा 

झांसी से जाने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर आक्रमण करके वहां के किले पर अधिकार जमा लिया। वहीं अंग्रेज भी रानी का पीछा करते हुए ग्वालियर पहुँच गए। यहाँ भी रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। हालाँकि एक समय ऐसा भी आया जब वह घायल हो गई और वीरगति को प्राप्त हुईं।