जन्मस्थली पर मनाई गई रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि, महंत बोले- मनु को काशी की माटी ने ही उन्हें स्वतंत्र रहना सिखाया

जन्मस्थली पर मनाई गई रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि, महंत बोले- मनु को काशी की माटी ने ही उन्हें स्वतंत्र रहना सिखाया

वाराणसी (रणभेरी): वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की 167वीं पुण्यतिथि पर बुधवार को उनके भदैनी स्थित जन्मस्थली पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। यह दो दिवसीय समारोह वाराणसी के जागृति फाउंडेशन के तत्वाधान में आयोजित पुण्यतिथि कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि संकट मोचन मंदिर के महंत एवं IIT BHU के प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र वीरांगना के चित्र पर माल्यार्पण किया। 

महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के अवसर पर महंत प्रोफ़ेसर विशंभर नाथ मिश्र ने कहा झांसी की रानी काशी की बेटी थीं। काशी की माटी और संस्कारों ने उन्हें निडर और स्वतंत्र बनना सिखाया। उन्होंने न केवल अंग्रेजों से लोहा लिया, बल्कि महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा भी बनीं।काशी के धार्मिक महत्व के कारण पेशवाओं को यहां से काफी लगाव था, जो कि अक्सर यहां आते रहते थे। अपने बनारस प्रवास के दौरान वे गंगा उस पार रेती में घुड़सवारी और तलवारबाजी का अभ्यास भी किया करते थे। अस्सी-भदैनी में पेशवा का किला भी था। 

रानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली से जुड़े जागृति फाउंडेशन के महसचिव रामयश मिश्र ने बताया कि लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ गंगा के उस पार जाती थीं और घुड़सवारी व तलवारबाजी का अभ्यास देखती थीं। बचपन में पड़ी युद्धकला की नींव भविष्य में उनके बहुत काम आई। भदैनी क्षेत्र में मोरोपंत तांबे की पत्नी भागीरथी बाई ने एक पुत्री को जन्म दिया। पुत्री का नाम मणिकॢणका रखा गया। प्यार से सब उसे मनु भी बुलाते थे। मनु जब चार-पांच वर्ष की थीं तभी उनकी मां का देहांत हो गया था। पिता मोरोपंत मराठा पेशवा बाजीराव की सेवा में थे। चूंकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था। इसलिए पिता अपने साथ मनु को बाजीराव के दरबार में ले गए, जहां चंचल मनु ने सबका मन मोह लिया।