फीस के नाम पर जेब पर डाका डाल रहे प्राइवेट स्कूल

फीस के नाम पर जेब पर डाका डाल रहे प्राइवेट स्कूल

वाराणसी (रणभेरी सं.)। स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है। छोटे-छोटे बच्चों के स्कूल जाने की बड़ी-बड़ी चिंताएं पैरेंट्स के चेहरों पर साफ तौर पर देखी जा सकती हैं। ये विकसित भारत के रास्ते पर बढ़ते हुए नए भारत की नई इबारत है जो बच्चों की पढ़ाई के नाम पर जमकर लूटकर लिखी जा रही है। सुविधाओं के नाम पर प्राईवेट स्कूलों में पढ़ाई की फीस के नाम पर डाका ड़ाला जा रहा है। प्राइवेट स्कूलों में मनमानी फीस, महंगी ड्रेस, महंगी किताबों से अभिभावक परेशान हैं। री-एडमिशन के नाम पर प्रतिवर्ष प्राइवेट स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों का शोषण किया जा रहा है। प्राइवेट स्कूल संचालक स्कूल फीस के नाम पर भी मोटी रकम वसूल रहे हैं। बिजली बिल से लेकर कई एक्टिविटी की राशि स्कूल संचालक अभिभावकों से वसूल रहे हैं, जबकि अधिकांश स्कूलों में कोई गतिविधि नहीं होती है। खेल के नाम पर भी स्कूल राशि वसूल रहे हैं लेकिन अधिकांश स्कूलों के पास खेल मैदान तक उपलब्ध नहीं हैं। स्कूल फीस में प्रतिवर्ष 10 से 15 फीसदी की वृद्धि हो जा रही है। इसके कारण अभिभावकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के उनके सपने आर्थिक तंगी के कारण टूट रहे हैं।

हमारे देश में अधिकांश लोग मुश्किल से रोजी-रोटी कमा पाते हैं, अब सवाल ये उठता है कि जब देश की अधिकांश जनता अभी आर्थिक रूप से कमजोर है तो क्या ये स्कूल गरीबों के मखौल उड़ाने के लिए खुले हैं ? इन स्कूलों में ऐसा क्या पढ़ाया जाता है कि 05 साल के बच्चों की फीस 50 हजार रुपए उगाह ली जाती है। किसी किसी स्कूलों में तो ये फीस लाखों में है। जबकि इन्हीं स्कूलों के अध्यापकों की फीस देखा जाए तो ज़्यादा से ज़्यादा 20-25 हजार होती है। कई स्कूलों में शिक्षक की तनख्वाह महज 5 से 10 हजार के बीच है। सरकारी स्कूल के अध्यापकों की सैलेरी लाखों में है वहीँ प्राईवेट स्कूलों के अध्यापक कुछ ही हजार रुपए में गुजर-बसर कर रहे हैं। सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापकों के बच्चे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ते हैं जबकि प्राईवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। सोचकर देखा जाए तो समझ आता है कि शिक्षा के नाम पर देश के लोगों का कितना कबाड़ा बनाया जा रहा है। अध्यापकों सहित पूरे देश को पता है कि सरकारी स्कूलों में ढंग से पढ़ाई ही नहीं होती, तो वे अपने बच्चों को क्यों पढ़ाएं ! क्योंकि उन्हें पता है कि वे क्या पढ़ा रहे हैं। 

सबसे प्रमुख बात प्राईवेट स्कूलों में सरकार एवं बड़ी-बड़ी संस्थाएं उन्हें मान्यता, रजिस्ट्रेशन दे देती हैं फिर कभी झांकने नहीं जातीं। जब प्राइवेट स्कूलों में नहीं जाते तो सरकारी स्कूलों में भला कौन जाता होगा। स्कूलों के लिए एक नियमावली बनना चाहिए कि कितनी फीस हो सकती है, एक पाठ्यक्रम होना चाहिए हर स्कूल अपना पाठ्यक्रम खोलकर बैठा हुआ है ! शिक्षा विभाग हाथों में मेहंदी लगाकर क्यों बैठा है ! प्राईवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाओ तो क्या यह भी नियम होना चाहिए कि बच्चों की स्कूल ड्रेस, किताबें सामाग्री सबकुछ स्कूलों ऐ क्यों खरीदा जाए ? स्कूल चला रहे हैं या मार्केट ? हालांकि पूरी तरह उनका दोष नहीं है क्योंकि शिक्षा विभाग ने पूरी तरह से उन्हें लूटने के लिए छोड़ रखा है, और प्राईवेट स्कूलों वाले जमकर लोगों को लूट रहे हैं। समझ नहीं आ रहा पुस्तकों एवं शिक्षा के नाम पर ये लूट पाट कब बंद होगी ? कब लगाम लगेगी। प्रशासन स्कूलों के खिलाफ मुकम्मल कार्रवाई नहीं कर रहा जिससे उनके इरादे बुलंद होते जा रहे हैं। अभिभावकों के लिए बढ़ी फीस अदा करना चुनौती के समान है। ट्यूशन फीस, स्कूल मेनटेनेंस फीस, इंटरनेट फीस सहित विभिन्न मदों में निजी स्कूलों ने अपनी सुविधा के अनुसार बढ़ोतरी की है। कुल मिलाकर फीस में पंद्रह से बीस फीसद तक का इजाफा किया गया है। जिन अभिभावकों के दो या तीन बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, उनकी परेशानी बढ़ गई है। सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंड्री एजुकेशन (सीबीएसई) के द्वारा हर स्टेट में एक एडमीशन एंड फी रेगुलेटरी कमेटी का गठन किया जाता है। कमेटी की जिम्मेदारी होती है कि वह हर वर्ष यह तय करेगी कि स्कूलों में कितनी फीस बढ़ाई जाए। लेकिन स्कूल अपनी मनमर्जी दिखाते हुए फीस बढ़ाते हैं। यही कारण है कि स्कूलों के द्वारा बढ़ाई गई फीस अलग-अलग है। कोई नियम कानून नहीं है। फीस में हर वर्ष हजारों रुपये की बढ़ोतरी कर स्कूल अपनी जेब भर रहे हैं। आम आदमी अपने बच्चों को किस प्रकार पढ़ा रहा है स्कूलों को इससे कोई लेना देना नहीं है। सैलरी डेढ़ दो हजार रुपये बढ़ती है।  प्रशासन को चाहिए कि निजी स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठाए। बच्चों की फीस देने के लिए अभिभावक अपने दूसरे खर्चों में कटौती करने को विवश हैं। अभिभावकों की जेब काटकर स्कूल अपनी जेब भर रहे हैं। इस पर सरकार को नियम बनाना चाहिए।

निजी स्कूलों में बच्चों के लिए शिक्षा ग्रहण करना काफी महंगा साबित हो रहा है। स्कूल प्रबंधनों की मनमानी से अभिभावक काफी त्रस्त हैं। स्थिति यह है कि अभिभावक चाहे जिस स्कूल में अपने बच्चों का एडमिशन कराए जेब तो कटेगी ही कटेगी। अभिभावकों से तरह-तरह के खर्च वसूल किए जाते हैं। 

निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ  हिंदू युवा वाहिनी ने उठाई आवाज

वाराणसी (रणभेरी सं.)। शहर के प्राइवेट सीबीएसई स्कूलों द्वारा सीबीएसई मानकों की अनदेखी और अवैध शुल्क वसूली के मामलों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता एवं हिंदू युवा वाहिनी के महानगर मंत्री अभिषेक कुमार श्रीवास्तव ने सख्त नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि वाराणसी में कई निजी स्कूल सीबीएसई के निदेर्शों और उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय शुल्क अधिनियम 2018 के मानकों की खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। सीबीएसई गाइडलाइन 4.1 के अनुसार कक्षाओं का आकार, साइंस लैब, कंप्यूटर लैब, लाइब्रेरी और दिव्यांग छात्रों के लिए विशेष सुविधाएं जैसी आवश्यक संरचनाएं स्कूलों में नहीं हैं, बावजूद इसके स्कूल मनमाने तरीके से संचालन कर रहे हैं। श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि ये विद्यालय हर वर्ष मनचाही फीस वृद्धि करते हैं और अभिभावकों को विशेष दुकानों से ही पुस्तकें और पाठ्य सामग्री खरीदने के लिए बाध्य करते हैं, जिससे कमीशनखोरी को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आरटीई के तहत चयनित बच्चों से भी स्कूल अलग से अनधिकृत धनराशि मांगते हैं। इस वजह से समाज के गरीब, पिछड़े और वंचित तबके के बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। उन्होंने इंपीरियल पब्लिक स्कूल, अस्सी-भदैनी का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां भी अभिभावकों पर शुल्क देने का दबाव बनाया गया और मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस अभियान के जरिए उन्होंने प्रशासन से कार्रवाई की अपील करते हुए कहा कि यदि जांच नहीं हुई, तो आंदोलनात्मक रास्ता अख्तियार किया जाएगा