काव्य-रचना
आडंबर काफिला
बुराई का बढ़ रहा जत्था,
बँधी बेड़ियों में अंध आस्था।
गाय सड़कों पर असहाय,
और भक्त गंगा जी नहाय।
सब डुबकी पुण्य की लगाय,
फिर भी मैल जमा रह जाय।
है जहाँ गरीबी मूढ़ता जड़ता,
वहीं आडंबर काफिला बढ़ता।
नहीं होते ईश्वर-अल्लाह जुदा,
अगर इंसान में दिखता खुदा।
रोटी-दाल की चिंता न सताय,
तो मंहगाई की अच्छाई गिनाय।
छल झूठ बेईमानी में गुरु नग्न,
और सब अंधविश्वास में मग्न।
यदि मजहब नहीं सिखाता बैर,
तो नफ़रत को भरकर मत तैर।
जब शिक्षा की मशाल जलेगी,
दुनिया से पाखंड की लौ बुझेगी।
- सूर्यदीप कुशवाहा