काव्य-रचना
रूह की रोशनी
देखा जब आँसू के आईने में अपने को
तब जाना कि दिल में दर्द के दाग हैं
दिमाग ने नेह की देह पर लिखा
आँख और आँत में आग के राग हैं
मैं ढो रहा हूँ तुम्हारी बातों का बोझ
अब जिह्वा पर तीन अक्षर बेलाग हैं
रीढ़ की हड्डियों में हुस्न की हँसी
पवित्र प्रेम में समर्पण और त्याग हैं
नसों में रक्त नहीं, रूह की रोशनी
पतझड़ के विरुद्ध मन के बाग हैं!
-गोलेन्द्र पटेल