काव्य-रचना
एक सिंहनाद कर
लेकर सुनियोजित काम
सबको बना रहे बेदम
जल्द ही उखाड़ फेंको इनको
वरना कर देंगे बेकाम
फिर बनकर गुलाम तुम
क्या झंडा उठाओगे
कैसे खुद को नीचा करके
उनके नखरे उठाओगे
तेरी आज जो अस्मत है
वह तार तार हो जायेगी
रुआब रसूख सब तेरी
सारे बाजार जायेगी
संभालो होश में आओ
कोई भगवान नहीं आएगा
बचालो यह गुलिस्तां
कोई कितना समझाएगा
खुद की ताकत पहचानो
और दम से वार करो
बना रहा जो तिलिस्म
उनका प्रतिकार करो
छोड़ उनके टट्टूओ को
वो सिर्फ प्रतिमान है
जिनसे हो कत्ल इंसानों का
वह कैसा भगवान है
अभी उसका है रूप रंग जो
वो सब छलावा है
तुम्हें भरमाने को बंधवाए
विविध कलावा है
मत भूल की उसका शासन
तुमने नकारा है
उसे पाने को उसने फिर से
सिर उभारा है
चल उठ कि अब बहुत हुआ
तू भी एक सिंहनाद कर
अपने लूटते साम्राज्य को बचाने
फिर से चल परवाज कर
जयप्रकाश "जय बाबू