काव्य-रचना
कुछ तो छुपा रखा है ओंस की बूंदों ने
इन वादियों की बारिश के बूंदों में कुछ बाते हैं
कुछ तो छुपा रखा है ओंस की बूंदों ने
बारिश की हल्की बूंदे हो या ओंस की फैली शांति
कुछ कहती नहीं कुछ बताती नही है
पर बहुत कुछ धीरे धीरे सिखाती है
हल्की हल्की खिली धूप में बारिश के बूंदों
जैसी ओंस देती उस मौसम का फरमान है
कड़कती धूप के बाद सुहाने ढलते शाम देते फरमान हैं
जैसे आंखों में आई सावन की हरियाली रंग है
कह रही हो मुझे भी दो कुछ इस हरियाली रंग के बदले अपना संग
हो जाती बारिश के बूंदे या आती ओंस की सफेद थाली
इनके नई ये मौसम करते बाते दिलाते हमे एहसास हैं
हो ओस की बूंदे या बारिश की हमे कराते एहसास
हो हम दोनों जैसे किसी उपवन मे
अंजली सिंह रघुवंशी