काव्य-रचना

काव्य-रचना

   पीड़ा की पुकार       

दिन में दीन की आँखों में
कड़ी धूप खड़ी है
संसार की संघनित स्मृतियाँ
बाढ़ का रूप ले चुकी हैं
गाढ़ गम को आढ़ का आश्वासन है
कि दुख अनन्त है! अनादि है! अनश्वर है!
शाश्वत सत्य-ईश्वर से ईर्ष्या है!

पड़िया को पुकारती कोई भैंस
मानवपशु की पीड़ा की पुकार में जहरीली गैस है
डूबते गाँव की गुहार में बहुत डैस है
वाह और आह के बीच बदी
बरसात में बवाल है
अहर्निश और अनाहत के बीच नदी
सत्ता के लिए सवाल है
इस वाया सदी में रव की रदी
पागल हिलोरें चिंघाड़ रही हैं!

शिव!
गांगेय के ओरहन में अर्चना है
उनकी अव्याहत धारा अपने आँगन में कुछ क्षण
विश्राम करना चाहती है
किन्तु वे धाम ढह रहे हैं
जो उनके परिसर में बनाये गये हैं
भैंस की उम्मीद भँवर में उतरा गयी है
आसमान में वसुन्धरा वात्सल्य का वाक्य लिख रही है
जिसे पढ़कर शायद कोई वज्र गिरे
उस शहर में उधर उनके घर!!

गोलेन्द्र पटेल