काव्य रचना
अभी अफीम का नशा उतरा नहीं है यारों
अभी अफ़ीम का नशा उतरा नहीं है यारों
और चढ़ जाने दो नाली में पड़े
रहने दो
और जब नशे से उतरेंगे तो
फ़टे हाल में खुद को
अजनबियों जैसा घूरेंगे,
मेरे तन का कपड़ा कहां गया?
मेरे सर से तिरपाल कहां गया?
तब मालूम पड़ेगा
किसी ने ऐसा नशा पिलाया की
होश न रहा
यारों,
तब हम जोर-जोर से गला
फाड़कर रोयेंगे
पर आवाज वहां तक नहीं
पहुंच पाएगी
क्योंकि वहाँ अब कोई रहता नहीं
सिवाय शिलालेख के।
सब कुछ खतम कही ऐसा न हो जाय,
अस्तित्व बचा रहे इंसानियत की
विनय विश्वा