नियमों को ताख पर रखकर तन रहे मोबाइल टावर
- स्कूल और आबादी क्षेत्र होने के कारण लोगों को सता रहा रेडिएशन से होने वाली बीमारियों का खतरा
- शिकायत के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई, स्थानीय लोगों में आक्रोश
वाराणसी (रणभेरी): चंद पैसों की लालच में लोग अपने साथ साथ आस-पास के लोगों की जिंदगी की भी परवाह नहीं करते। न उन्हें नियम की परवाह होती न कानून की। नियमों को ताक पर रख कर निजी कंपनी के मोबाइल टावर लगाने का एक ऐसा ही मामला प्रकाश में आया है जहां आवासीय क्षेत्रों में टावर लगाया जा रहा है। लंका क्षेत्र के नरोत्तमनगर कॉलोनी में एक निजी स्कूल से सटे निमार्णाधीन मकान में निजी कंपनी का टावर लगाया जा रहा है। स्कूल और आबादी क्षेत्र होने के कारण लोगों ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री पोर्टल, अपर पुलिस आयुक्त और वीडीए से की, बावजूद इसके टावर लगाने का काम जारी है। अवैध तरीके से लगाए जा रहे टावर पर स्थानीय लोगों में डर और काफी रोष है। स्थानीय लोगों का कहना है कि टेलीकॉम कंपनियों की ओर से अपने उपभोक्ताओं को बेहतर सर्विस प्रदान करने के लिए शहर के विभिन्न स्थानों में मोबाइल टावर लगाया गया है, लेकिन इसमें रेडिएशन की रोकथाम के लिए कोई बेहतर उपाए नहीं किया गया है, न ही कोई नियमों का पालन किया गया है। ऐसे में इससे निकलने वाली विकिरणों से मानव स्वास्थ पर खतरा बढ़ गया है।
टॉवर के आसपास रहने वाले लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, जिसका डर सता रहा। स्थानीय लोगों ने कहा कि टावर लगाने के लिए जारी गाइडलाइंस का पालन किए बिना ही निमार्णाधीन मकान पर निजी कंपनी द्वारा टावर लगाया जा रहा। पास में ही सटे एक निजी स्कूल भी है जहां बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं, ऐसे में टावर के रेडिएशन से उनको भी खतरा पहुंच सकता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इसकी शिकायत स्थानीय प्रशासन से भी की गई पर प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। आरोप है कि स्थानीय प्रशासन के सह पर अवैध तरीके से टावर लगवाया जा रहा है। लोगों ने बताया की जब वीडीए से इसकी शिकायत की गई तो जोनल अधिकारी मौके पर आकर निरीक्षण किए जिसके बाद काम बंद करने का निर्देश भी दिया, बावजूद इसके मनमाने तरीके से निमार्णाधीन मकान पर टावर लगाने का काम चल रहा है।
उल्लेखनीय है कि मोबाइल टॉवर से निकलने वाली विकिरणों से होने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइड लाइन जारी किया है। इसके तहत घनी आबादी, स्कूल, कालेज और शासकीय दफ्तरों के आसपास मोबाइल टॉवर नहीं लगाया जाना है, लेकिन टेलीकॉम कंपनियों द्वारा शत-प्रतिशत पालन नहीं हो रहा है। बहुत सारे निजी कंपनियों के मोबाइल टॉवर में अब तक इलेक्ट्रोमैग्निक रेडिएशन सिस्टम (रेडिएशन मापक यंत्र) नहीं लगाया जा सका है। यही वजह है कि मोबाइल टावर मानक से कई गुना अधिक रेडिएशन उत्सर्जित कर रहा है। इसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड लगा है।
तय मानक का भी नहीं हो रहा पालन
सूत्रों की मानें तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रेडिएशन की सीमा 4.5 वॉट वर्ग मीटर से लेकर 9 वॉट प्रति वर्ग मीटर है, जबकि भारत देश में यह 0.45 से लेकर 0.9 वॉट प्रति वर्ग मीटर है। इसके बाद जिले के अधिकांश जगहों पर लगे मोबाइल टॉवरों से रेडिएशन तय मात्रा से अधिक निकल रही है। ऐसे में जनस्वास्थ्य पर खतरा मंडराने लगा है।
स्कूल-अस्पताल के इर्दगिर्द टावर
वर्तमान में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा है। अनेक मोबाइल व टेलीकम कंपनियां ग्राहकों को ज्यादा से ज्यादा और बेहतर सुविधा बताकर ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई तरह के अफर व स्कीम चला रहे हैं। ग्राहकों को सुविधा देने के नाम पर टेलीकम कंपनियों ने तो सारी हदें पार कर रही हैं । इसलिए ये कंपनियां शैक्षणिक संस्थाओं, अस्पतालों के समीप, ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय स्कूल के समीप भी टावर लगा दिए गए हैं । घनी आबादी इलाके को भी नहीं छोड़ रहे हैं।
टावर लगाने के ये हैं नियम
छतों पर सिर्फ एक एंटीना वाला टावर ही लग सकता है, पांच मीटर से कम चौड़ी गलियों में टावर नहीं लगेगा। एक टावर पर लगे एंटीना के सामने 20 मीटर तक कोई घर नहीं होगा, टावर घनी आबादी से दूर होना चाहिए, जिस जगह पर टावर लगाया जाता है, वह प्लाट खाली होना चाहिए, उससे निकलने वाली रेडिएशन की रेंज कम होनी चाहिए, कम आबादी में जिस बिल्डिंग पर टावर लगाया जाता है, वह कम से कम पांच-छह मंजिला होनी चाहिए।