जोनल मेहरबान तो किसकी मजाल जो रोक ले अवैध निर्माण

- अस्सी क्षेत्र के मारवाड़ी सेवा संघ के बगल वाली गली में एक गेस्ट हाउस के सामने धड़ल्ले से जारी है होटल का निर्माण
- गंगा किनारे से लेकर एचएफएल क्षेत्र को नीलाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है जोनल संजीव कुमार
- डील हुआ टोटल तो देखते ही देखते मारवाड़ी सेवा संघ के बगल वाली गली में तन गया होटल
- वाराणसी में असि घाट से लेकर एचएफएल तक, हर ईंट गवाही दे रही है सिस्टम के सड़न की
अजीत सिंह
वाराणसी (रणभेरी):काशी...मोक्ष की भूमि, बाबा विश्वनाथ की नगरी, प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र और गंगा किनारे बसी धार्मिक नगरी आज बिल्डरों और भू-माफियाओं के चंगुल में जकड़ चुकी है। और इस पूरे खेल में सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के वीसी पुलकित गर्ग । पुलकित गर्ग के संरक्षण और सहमति से ही विकास प्राधिकरण जोन -4 के जोनल अधिकारी संजीव कुमार ने भेलूपुर और नगवा जोन में सैकड़ों अवैध निर्माणों की लाईन लगवा दी है। जिनकी मेहरबानी के बिना एक ईंट भी नहीं रखी जा सकती। असि क्षेत्र से लेकर एचएफएल, ब्रिज एनक्लेव, नगवां और दुर्गाकुंड तक हर जगह यही कहानी है। वाराणसी के असि क्षेत्र, जो गंगा नदी के तटवर्ती इलाकों में आता है, वहां स्थित मारवाड़ी सेवा संघ के बगल वाली गली में एक होटल का निर्माण तेजी से चल रहा है। यह निर्माण पूरी तरह से अवैध है। न कोई नक्शा पास, न कोई भू-स्वीकृति, और न ही पर्यावरण विभाग से मंजूरी। फिर भी निर्माण कार्य बिना रोक-टोक के जारी है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि जबसे "डील टोटल" हुई है, तबसे वीडीए के किसी अधिकारी ने झांकने की भी ज़हमत नहीं उठाई। गली के अंदर पहले एक गेस्ट हाउस था, अब वहां बहुमंजिला होटल बन रहा है। और इस निर्माण के संरक्षणकर्ता हैं...जोनल अधिकारी संजीव कुमार।
गंगा किनारे की खुली नीलामी का ठेकेदार संजीव कुमार
गंगा नदी की 200 मीटर परिधि में किसी भी प्रकार के वाणिज्यिक निर्माण पर सख्त रोक है, लेकिन वाराणसी के असि, तुलसी घाट, नगवां और सुंदरपुर जैसे इलाकों में धड़ल्ले से होटल, गेस्ट हाउस और दुकानों का निर्माण जारी है। ये निर्माण कानून की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हैं, और इसके केंद्र में बताया जा रहा है कि जोनल अधिकारी संजीव कुमार हैं। सूत्रों के अनुसार, संजीव कुमार या तो स्वयं निर्माण स्थलों का निरीक्षण करते हैं या अपने विश्वस्व सहयोगियों को भेजते हैं। अगर सौदा तय हो गया तो फाइलें चुपचाप आगे बढ़ जाती हैं, और निर्माण कार्य में कोई रुकावट नहीं आती। जिन नक्शों को वैधानिक मान्यता नहीं मिली होती, उन्हें फर्जी दस्तावेजों के जरिए पास करवा दिया जाता है। बस जेब गरम होनी चाहिए, नियम अपने आप झुक जाते हैं। स्थानीय लोग इसे गंगा किनारे की खुली नीलामी कहते हैं, जहां जमीन, नियम और नैतिकता सब बिकाऊ हैं, और ठेकेदार बन बैठे हैं जिम्मेदार अधिकारी।
जोनल संजीव कुमार के संरक्षण में तन गई भ्रष्टाचार की इमारतें
गंगा किनारे और नगवां, असि, सुंदरपुर जैसे क्षेत्रों में जो इलाके कभी आम नागरिकों के सामान्य आवास थे, वहां आज बिना नियम-कानून की परवाह किए बहुमंजिला अवैध इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। इन इमारतों में न पार्किंग की व्यवस्था है, न अग्निशमन सुरक्षा उपकरण, और न ही वैध भू-स्वीकृति। ये अवैध निर्माण न सिर्फ नगर नियोजन के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, बल्कि वहां रहने वाले लोगों की जान को भी खतरे में डाल रहे हैं। सूत्रों के अनुसार,इस क्षेत्र में यह सब संभव हो सका है वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) के ज़ोनल अधिकारी संजीव कुमार की कथित शह और संरक्षण के चलते। आरोप है कि संजीव कुमार जानबूझकर इन निर्माणों की अनदेखी करते हैं, और नियमों के उल्लंघन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। शहर की रफ्तार से भागती ज़मीन पर भ्रष्टाचार की ये ऊंची इमारतें विकास नहीं, विध्वंस की कहानियां कह रही हैं। सवाल उठता है कि जब सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हैं, तब कार्रवाई क्यों नहीं होती ? क्या नियम सिर्फ गरीबों और कमजोरों पर लागू होते हैं ?
अगर जेब गरम हो, तो ज़ोनल साहब नरम हो जाते हैं...
वाराणसी में यह कहावत अब हकीकत बन चुकी है। जोनल अधिकारी संजीव कुमार पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि वह पैसे लेकर अवैध निर्माणों को न सिर्फ नज़रअंदाज़ करते हैं, बल्कि मौके पर पहुंचकर उन्हें वैध ठहराने की कोशिश भी करते हैं। बिना किसी चालान और नोटिस के महीनों तक निर्माण कार्य चलता रहता है। जब कोई सामाजिक कार्यकर्ता या स्थानीय निवासी इसका विरोध करता है, तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है। सवाल यह है कि क्या कानून अब जेब के तापमान से तय होगा ? वाराणसी में निर्माण माफिया और प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारियों का गठजोड़ अब किसी रहस्य से कम नहीं। जब जोनल अधिकारी ही संरक्षक बन जाएं, तो अवैध निर्माण कौन रोकेगा? अगर गंगा किनारे होटल उग रहे हैं, अगर हेरिटेज जोन में कॉम्प्लेक्स बन रहे हैं, अगर हाईकोर्ट के आदेश हवा में उड़ाए जा रहे हैं, तो यह केवल एक अफसर की लापरवाही नहीं, यह प्रशासनिक मिलीभगत की गवाही है। और तब सवाल बनता है कि जब जोनल मेहरबान हों, तो किसकी मजाल जो अवैध निर्माण रोक ले?
अब कब जागेगा मुख्यमंत्री कार्यालय ?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार वाराणसी को न केवल स्मार्ट सिटी, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित करने की बात करते हैं। लेकिन जब गंगा की 200 मीटर परिधि में खुलेआम होटल, गेस्ट हाउस और कॉम्प्लेक्स खड़े हो रहे हों, और ज़िम्मेदार अधिकारी जानबूझकर आंखें मूंद लें, तो यह सरकार की नीयत पर नहीं, बल्कि व्यवस्था पर करारा तमाचा बन जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री के जनप्रतिनिधि और अफसरशाही इस मौन स्वीकृति के ज़रिये योगी सरकार की छवि को खुद ही दागदार नहीं बना रहे? जब निर्माण स्पष्ट रूप से अवैध हैं, जब कोर्ट के आदेश और शासन के निर्देश मौजूद हैं, तो आखिर इन्हें रोका क्यों नहीं जा रहा ? उत्तर बेहद साफ है कि जब अवैध निर्माणों पर कार्रवाई करने वाले ही उनके संरक्षक बन जाएं, तब कानून, न्याय और पारदर्शिता केवल भाषणों और विज्ञापनों तक सीमित रह जाते हैं। वाराणसी का आध्यात्मिक आभामंडल इन भ्रष्ट संरचनाओं के साये में घुटने लगता है, और जनता ठगा सा महसूस करती है। असि क्षेत्र में स्थित मारवाड़ी सेवा संघ के ठीक बगल की गली में एक गेस्ट हाउस के सामने इन दिनों निर्माण कार्य तेजी से जारी है। यह कोई मामूली निर्माण नहीं, बल्कि एक बहुमंजिला होटल की नींव रखी जा रही है, वो भी गंगा से कुछ ही दूरी पर। सबसे हैरानी की बात यह है कि यह सबकुछ ज़ोनल अधिकारी और वीडीए (वाराणसी विकास प्राधिकरण) की आंखों के सामने हो रहा है, लेकिन कार्रवाई का नामोनिशान नहीं।
सूत्रों की मानें तो इस अवैध निर्माण को बचाने के लिए मोटी रकम का लेन-देन हो चुका है। कुछ लोगों का दावा है कि ज़ोनल स्तर पर 'मौन स्वीकृति' दे दी गई है, और यही कारण है कि शिकायतों के बावजूद निर्माण नहीं रुका। सवाल ये है कि क्या जिम्मेदार अफसरों पर कोई कार्रवाई होगी या यह निर्माण भी अन्य कई अवैध इमारतों की तरह सिस्टम की चुप्पी में दफ्न हो जाएगा ?
आनंद कानन के नाम से प्रसिद्ध काशी आज कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है वीडीए द्वारा किया गया अनियोजित और भ्रष्टाचारपूर्ण विकास। विकास के नाम पर यहां की विरासत, हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य को मिटाया जा रहा है। शहर में न ट्रैफिक की योजना है, न जलनिकासी की व्यवस्था। बिना नक्शा पास कराए बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो रही हैं, जिससे काशी की सांस्कृतिक आत्मा दम तोड़ रही है।
बबलू मौर्या
शहर में अवैध निर्माण की शुरुआत पहले गलियों और मोहल्लों से कराई जाती है, फिर वाराणसी विकास प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारी सीलिंग की धमकी देकर मोटी रकम वसूलते हैं। यह एक सुनियोजित उगाही तंत्र बन चुका है। इसी कारण आज वाराणसी की हर गली में अवैध इमारतें खड़ी हैं, जो न सिर्फ नियमों की धज्जियां उड़ाती हैं, बल्कि शहर की सुंदरता और सुरक्षा को भी खतरे में डालती हैं।
विकास जयसवाल
यदि वीडीए के अधिकारी और कर्मचारी ईमानदारी से काम करें, तो शहर में एक भी ईंट गलत तरीके से नहीं रखी जा सकती। लेकिन हकीकत यह है कि जहां भी अवैध निर्माण हो रहे हैं, वहां कहीं न कहीं विभाग के ही अधिकारी या कर्मचारी की मिलीभगत होती है। भ्रष्टाचार और मिलीभगत ने ही शहर को अवैध इमारतों से भर दिया है। नियम-कानून केवल कागजों तक सीमित रह गए हैं।
आशीष सोनकर
यदि वीडीए के अधिकारी और कर्मचारी ईमानदारी से काम करने की ठान लें, तो नगर में एक भी ईंट गलत तरीके से नहीं रखी जा सकती। मगर हकीकत यह है कि जहां भी अवैध निर्माण हो रहा है, वहां विभागीय मिलीभगत पाई जाती है। भ्रष्टाचार इतना गहराया है कि बिना अधिकारियों की सहमति के कोई भी निर्माण संभव नहीं। नियमों की अनदेखी अब आम बात हो गई है।
अजय पटेल
वाराणसी विकास प्राधिकरण को शहर को सुनियोजित और सुंदर रूप देने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन यहां के भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी खुद का विकास करने में लगे हैं। परिणामस्वरूप नगर में अनियोजित विकास की बाढ़ आ गई है। हर गली, हर मोहल्ले में नियमों को ताक पर रखकर अवैध निर्माण हो रहे हैं। विकास की जगह अराजकता और अव्यवस्था ने शहर को घेर लिया है।
अनिकेत सिंह
रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए.....दबी जुबान बोल रहे हैं देखो अपने नेता जी