आप प्रत्याशी के दांव करारे, भगवा दुर्ग में दिखनी लगी दरारें

आप प्रत्याशी के दांव करारे, भगवा दुर्ग में दिखनी लगी दरारें
  • प्रचार युद्ध के अंतिम दौर में बढ़त करिश्माई, अजीत की दमदार उपस्थिति से तस्वीर बदलती नजर आयी

वाराणसी (रणभेरी): वाराणसी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की आठों सीटों पर राजनीतिक दलों के बीच घमासान प्रचार अभियान चरम पर हैं। सभी दलों ने अपनी जीत पक्की करने के लिए प्रचार घमासान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सभी के अपने अपने दावें हैं। भाजपा के पास जहां अपना जनाधार बनाए रखने की चुनौती है वही अन्य दलों ने भी अपने काडर के दम पर भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की सारे फामूर्ले प्रयोग कर डाले है। इस घनघोर प्रचार युद्ध के बीच कुछ सीटों पर परंपरागत गणित के जोड़ घटाने के विपरीत कुछ नई लीकें बनती दिख पड़ने लगी है। इसमें सबसे आश्चर्यजनक तस्वीर भारतीय जनता पार्टी के अभेद्य दुर्ग समझे जाने वाले शहर दक्षिणी विधान सभा क्षेत्र में उभरती दिखाई देती है। 

राजनीतिक पंडितों के अब तक का आकलन उसी पुराने ट्रेंड पर आधारित  था कि मतदान तिथि की पूर्व संध्या तक संशय के बादल छंट जायेगे और समाजवादी पार्टी तथा सत्तारूढ भाजपा के बीच सीधी टक्कर का खाका स्पष्ट हो जाएगा। पर इसके विपरीत क्षेत्र में जहां तक नजर जा रही है परिदृश्य पर एक अलग ही दृश्यवाली अंकित होती नजर आ रही हैं। क्षेत्र की जनता के रुझान संकेत दे रहे है कि इस क्षेत्र में इस दफा कुछ अलग ही बयार चलेगी। लड़ाई के आसार तो सीधी टक्कर के ही है, किंतु चुनौती बदल जायेगी। इस नई तस्वीर के बदलते रंग को देख कर सियासी नजूमियों की राय में जो फर्क दिख रहा है उसका कारण है आम आदमी पार्टी के युवा प्रत्याशी अजीत सिंह के पक्ष में बदलता वह माहौल जिसकी प्रतिद्वंदियों को कोई कल्पना तक न थी। अजीत ने क्षेत्र में अपनी निरंतर उपस्थिति से दावेदारी की जो कंकरीटी बुनियाद बनाई है उसके दम पर वे भाजपा के प्रत्याशी को सीधी टक्कर देने की स्थिति बना रहे है। भगवंत मान जैसे लोकप्रिय नेता की सभा के बाद से ही इस तरह के सियासी कैयास लगाए जाने लगे थे।

प्रचार के अंतिम दौर में क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में आयोजित धुआंधार सभाओं व युवाओं की जोश और खरोश के साथ निकाली गयी रैलियों को मिल रहे अपार जन समर्थन से ऊहापोह की धुंध लगभग पूरी तरह छंट गई है। प्रचार युद्ध में अन्य प्रतिद्वंदी जब बड़ी रैलियों और बड़े आयोजनों के लिए अपने स्टार प्रचारकों का मुंह जोह रहे थे। उस समय अजीत अपने बेदाग चरित्र व चेहरें के दम पर मुहल्लें के नुक्कड़ों, गली के चाबूरों, बुनकरों के करघों से लगायत नौजवानों की अड़ियों को कस कर पकड़े हुए थे। 

नतीजा उनके पक्ष में लगातार बदलती हवा के रूप में सामने आई। जिसे देखा तो नही जा सकता, अलबत्ता महसूस शिद्दत से किया जा रहा है। यह ठीक है की क्षेत्र में भाजपा के अपने पॉकेट्स है। मुख्य प्रतिद्वंदी समझे जाने वाली सपा को भी अपने परंपरागत यादव वोटों व अल्पसंख्यकों के एक जुट ध्रुवीकरण पर पूरा भरोसा था लेकिन जैसे जैसे प्रचार घमासान शीर्ष पर आने लगा। 

यह बदलाव एक लहर की शक्ल बनाने लगा। धीरे धीरे यह बात साफ होने लगी की जातीय गोलबंदी और धार्मिक ध्रुवीकरण के तमाम मिथकों को तोड़ कर अजीत सिंह सभी वर्गों में अपनी जबरदस्त पैठ बना चुके हैं। उनकी छोटी- छोटी सभाओं में जुटें लोगो के चेहरे के भाव यह बताने के लिए काफी हैं। एक नौजवान उम्मीदवार ने अपने काम के बूते कहा तक अपनी पहचान को पहुंचाया है, एक निर्दल पार्षद के रूप में जनता की उम्मीदों को कितना परवान चढ़ाया है। अब जबकि चुनाव प्रचार अंतिम दौर में पहुंचने को है इतना तो भरोसे के साथ कहा जा सकता है की शहर दक्षिणी के दावेदारों की मजबूती को लेकर जो भी आकलन किए जायेगे उसमे अजीत की दमदार चुनौती की अनदेखी करना मुश्किल होगा।