साहब! छोटे भाई ने कागज में मुझे मार डाला, जिंदा कर दीजिए- सीएम के जनता दर्शन में लगाई फरियाद
गोरखपुर। साहब! मैं कमाने बाहर गया तो छोटे भाई ने संपत्ति हड़पने के लिए कागज में मुझे मृत घोषित करा दिया। मृत घोषित कराकर मेरी संपत्ति पर कब्जा कर लिया। अब मैं दर-दर भटकने को मजबूर हूं। साहब! मेरे साथ न्याय कीजिए।
यह फरियाद लेकर महाराजगंज जिले के बेलवा खुर्द निवासी राकेश गुप्ता (42) खुद को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के पास दौड़ लगा रहे हैं। अधिकारियों के दफ्तरों से निराश राकेश ने अब मुख्यमंत्री के जनता दरबार में अर्जी लगाई है। राकेश ने दस साल तक लुधियाना में काम किया। वहां से लौटे तो मां-बाप की मौत हो चुकी थी। आरोप है कि छोटे भाई ने उस्तादी दिखाते हुए राकेश को भी परिवार रजिस्टर में मृत घोषित करा दिया और सारी संपत्ति पर खुद काबिज हो गया। जब राकेश घर पहुंचे तो छोटे भाई ने धक्का मारकर बाहर निकाल दिया। इसके बाद से ही राकेश शाहपुर इलाके में संगम चौराहा स्थित मानस विहार कॉलोनी के पास एक झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। मेहनत मजदूरी कर पत्नी और तीन बच्चों का पेट पाल रहे हैं। काम से छुट्टी मिलने पर वह हाथ में फाइलों का ढेर लेकर खुद को जिंदा साबित करने के लिए महराजगंज और गोरखपुर में प्रशासनिक दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। राकेश ने बताया कि वर्ष 1997 में 15 साल की उम्र में वह लुधियाना कमाने चला गए थे। तब उनकी शादी हो गई थी, लेकिन गवना नहीं हुआ। तीन साल बाद गांव लौटा, तब गवना हुआ। इसके बाद फिर परिवार के साथ लुधियाना चले गए। वहां से वह हर महीने पांच हजार रुपये घर भेजते रहे। दस साल बाद वह गांव लौटे तो मां-बाप की मौत हो चुकी थी। भाई ने पहचानने से इंकार करते हुए घर से निकाल दिया। दौड़-भाग करके गांव के लोगों के सहयोग से घुघली ब्लॉक से परिवार रजिस्टर की नकल निकलवाई। रजिस्टर में उन्हें पांच मार्च 1984 में ही मृत घोषित कर दिया गया था। राकेश को मृत घोषित कराकर छोटे भाई ने खेत, घर और दो-दो जगहों पर पूर्वजों की जमीन पर कब्जा कर लिया। 18 जून को मुख्यमंत्री के जनता दर्शन में प्रार्थना दिया। इसके बाद वीडियो और लेखपाल ने गांव जाकर जांच भी की, लेकिन अब भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।
होमगार्ड मामा भिजवा चुका है जेल
राकेश ने बताया कि उसके मामा होमगार्ड हैं। आरोप है कि वह छोटे भाई का सहयोग करते हैं। उन्होंने छोटे भाई के साथ मिलकर दो साल पहले धोखाधड़ी के आरोप में उन्हें जेल भी भिजवा दिया था। छह महीने बाद जेल से छूटे। राकेश का कहना है कि गांव के लोग उनके साथ हैं। सरकारी दफ्तर से जांच शुरू होती है तो छोटा भाई रुपये खर्च कर रिपोर्ट अपने पक्ष में लगवा लेता है।