जेकरे पैर न फटे बेवाई से का जाने पीर पराई

जेकरे पैर न फटे बेवाई से का जाने पीर पराई

स्थान- रविदास गेट के पास
समय- सुबह के 8 बजे
दिन- गुरुवार
पप्पू यादव की चाय की अड़ी

*जे अड़ी पर चंप के लड़ी उहे रण में भारी पड़ी
प्रस्तुति- राहुल सावर्ण
वाराणसी (रणभेरी)। चुनाव के अंतिम चरण में बनारस का मिजाज अब बदला बदला सा नजर आ रहा है। तापमान के साथ लोगों के मन में उभरते आक्रोश का पारा भी लगातार ऊपर चढ़ता जा रहा है। कहते है लंका पप्पू की अड़ी के संचालक पप्पू यादव ने कहा एसी कमरा में बईठ के गलदोदई कईले से अब निस्तार न होई। दिन आ गईल हौ हमार। अब फैसला मतदान केंद्र पर होई। उनका कहना है पांच की किलो राशन में परिवार कईसे चली, ई सबके सोचे के होई। एक ठे कहावत कहौल हौ जेकरे पैर न फटे बेवाई, से का जाने पीर पराई। इहे जनता के साथ हो रहल हौ। सरकार गरीबन के मदद के नाम पर बस छल कइले हौ। एकर जवाब ओकरे लगे नाही हौ की बेरोजगार लड़िकन सड़क पर चप्पल घिसटावत बुढ़ौती की ओर जा रहल हुअन। माई-बाप कलप कलप के बुढ़ौती बिता रहल हुअन। अब बस 48 घंटा के देर हौ। एही छल क जवाब वोट से दियाई। ई बात हमही नाही जानत हउवन टोपी वाले भाजपाई।
उनकी बात को वजन देते हुए सुरेश कुमार पटेल कहते है कि बात त सही कहत हुआ पप्पू जी। मुफुत क माल खा के अब उजबक नाही बने के हौ। लड़कन के नौकरी दा नाही त ई भौकाल नाही चले के हौ। कुल्हड़ से चाय की आखरी घूंट लेते हुए गोरखनाथ कहते है हम त नेता जी लोगन से ऐही कहे चाहत हई की ई 5 किलो राशन अपने लग्गे धरा। आम आदमी के रोजगार के फिकर करा। 
राजेश सोनकर कहते है मंदिर-मस्जिद क लड़ाई बहुत हो चुकल। अब जनता समझदार हौ।   उ देखत हौ की महंगी अ बेरोजगारी से केतना मचल हाहाकार हौ। ई सारा गुस्सा 1 जून के जब फटी त बड़न बड़न के होश उड़ जाई। रहल टेम्पो हाई क सवाल त अखिलेश भईया, राहुल भईया, प्रियंका दीदी और डिंपल भाभी अपने बयानन से शहर क हवा बदल देले हईन। 4 तारीख के जब ईवीएम क मशीन खुली त बड़े-बड़े पहलवान धूर फांकत नजर अईहे। एदवा त इंडिया गठबंधन के सरकार बनल तय हौ। शिवा सोनकर कहते है की भईया सबके ई-रिक्शा, समोसा कचौड़ी वालन के कमाई देखात हौ, लेकिन केतना ठेला पटरी वाले उजड़ गईलन उनकर बदहाली केहू के न सुझात हौ। गुलशन का कहना है इतने दिन झूठ पर शासन चलौलन लोगन, लेकिन ऐ चुनाव के नतीजा एनहन लोगन के बड़ भारी पड़े वाला हौ भाई। रवि दास बाबु अभी तक चुप बैठे थे। चाय के पहली घूंट के साथ ही उनका बोधि शक्ति जग जाता है। कहते है की एह शासन में सरकार  5 किलो राशन दे के 10 साल भरमावत रहल। अब देबे के पड़ी एकर हिसाब। का का अडानी अंबानी के बेचा गईल एहू के जवाब देबे के पड़ी। तबतक एकराम बोलनन की जनता महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हौ। दो वक्त रोटी जुटाबे में हालत खराब हो जात हौ। ई बार बदलाव होई। बबलू यादव का कहना था की ई सरकार में महंगाई बढ़ल जात हौ और कमाई घटल। चार सौ के सिलिंडर नौ से के मिले लागल, पेट्रोल सौ रुपये लीटर हो गईल, हर जगह लूट पाट मचल हौ लेकिन सरकार के कोई फरक नाही परत हौ। ये बार जनता 1 तारीख के आपन वोट से सरकार के फरक पड़वाई।


*आप प्रबुद्ध होने का पटका गले में लटकाकर राजनीति के पंडित होने का दावा करते रहिए, टीवी डिबेट के आधार पर चुनावी रण के सटीक विश्लेषण का दम भरते रहिए। फक्कड़ मस्त बनारसी तो अपने मिजाज के मुताबिक हालात का आकलन करता है। वह शहर की गलियों से लेकर सड़क के कोने कतरों तक पसरी चाय की हर वक़्त गुलजार अड़ियों की नब्ज टटोलकर ही चुनावी हरारत की खबर रखता है। किसी ढांप-तोप की परवाह किए बगैर अड़ियों पर हर वक्त जारी मौखिक घमासान ही उसकी घनघोर जानकारियों का सोता (स्रोत) है। दरअसल, बनारस में चाय की ये अड़ियां सिर्फ चायखाना नहीं बल्कि शहर का करेजा है। पूरे दुनिया जहान से लेकर नगर के टोले-मोहल्लों तक की धमनियां और शिराएं यहां से सीधी जुड़ती है। रोजमर्रा की जिंदगी हो या कोई खास इवेंट, चेतना की धारा यहीं से दाएं-बाएं मुड़ती है। तभी तो शहर की विभिन्न अड़ियों के घनघोर अड़ीबाजी सीना ठोककर दाबा करता है की - जे अड़ी पर चंप के लड़ी, उहे रण में भारी पड़ी। तो आइए रणभेरी के संग और समझिए इन अड़ियों व इनके महंतों से की आखिर किस तरफ जा रही है आज की सियासी जंग। किसके झंडे का गरने वाला है डंडा और किसके झंडे का उड़ने वाला है रंग!  - कुमार अजय