पूर्वांचल राज्य का मुद्दा दलों के मेनिफेस्टो से गायब क्यों!

पूर्वांचल राज्य का मुद्दा दलों के मेनिफेस्टो से गायब क्यों!

वाराणसी (रणभेरी): तीन दशकों से भी अधिक का समय बीत गया पृथक पूर्वांचल राज्य के मुद्दे को ठोस आकर लिए हुए परन्तु सच तो यह है कि इच्छाशक्ति की कमी के चलते यह मुद्दा कभी चुनावी मुद्दे का रूप नहीं ले पाया। बात इस दौर से शुरू होती है जब प्रदेश में उत्तराखंड राज्य के गठन को लेकर कोई सोच तक नहीं उभरी थी, तब भी विश्वनाथ गहमरी जैसे नेताओं ने इस मुद्दे की पौध को रोपा। यह अलग बात है की खाद्य-पानी न मिलने से बिरवा सूखता चला गया। वह तो भला हो राजेश आजाद जैसे नेताओं का जिन्होंने संसाधनों के अभाव के बावजूद इस मुद्दे को ऑक्सीजन देकर जिलाए रखा। 

शोर न सही शरगोशियां ही सही, अपने दम पर इस मुद्दे को प्रशांगिक बनाए रखा। बात पूर्वांचल राज्य के आकार की करें तो गौरतलब लगता है कि पूर्वांचल राज्य के प्रस्तावित 28 जनपदों की प्राकृतिक एवं भौगोलिक कोख हरी भरी है। पूर्वांचल की भूमि जहां एक तरफ समतलीय व उर्वरा है वहीं नदियों, पहाड़ों व खनिज पदार्थों का भी भरपूर भंडार है। इस पूर्वांचलीय क्षेत्र में ही अनपरा व ओबरा जैसी तापीय परियोजनाएं आस-पड़ोस के कई राज्यों को बिजली देकर वहां के उद्योग धंधों का पोषण कर रही है परंतु खुद अपने अस्तित्व के सवाल पर आकलन करें तो हर तरफ दिया तले अंधेरा नजर आता है। 

श्रम शक्ति से मजबूत होने के बावजूद पूर्वांचल के उद्योग धंधे सभी बंद पड़े है। इस विशेष क्षेत्र का समुचित विकास न होने के कारण यहां की समसंपदा महाराष्ट्र, गुजरात व राजधानी समेत कई अन्य राज्यों में रोजी रोटी के लिए पलायन को मजबूर है। आजादी के बाद पूर्वांचल की माटी मुठ्ठी में लेकर कई मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हुये लेकिन पूर्वांचल की झोली हमेशा खाली की खाली रही। गरीबी, बेरोजगारी उपेक्षा व अनदेखी से यह क्षेत्र विशेष गरीब ही बना रहा। नेताओं ने मंचों से तो हमेशा यहां की जनता को मुंगेरीलाल के सपने दिखाए और अपना वोट बैंक भी बनाया। समय समय पर वायदें भी किए परन्तु जब बारी आई तो मुद्दे से साफ-साफ किनारा कस लिया। सवाल यह है कि जब इसी उत्तर प्रदेश को बांटकर पृथक उत्तराखंड बिहार को बांटकर झारखंड, मध्यप्रदेश को बांटकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य स्थापित किए जा सकते हैं तो पूर्वांचल की मांग को नकारने का औचित्य क्या है !

यदि यह सपना साकार हुआ और 28 जिलों को मिलाकर पूर्वांचल राज्य अस्तित्व में आया तो निश्चित रूप से कई छोटे-छोटे राज्यों से भी बड़ा प्रदेश होगा। नये बंटे अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी सर्वांगीण विकास का रास्ता आसान होगा। 9 करोड़ की आबादी वाली पूर्वांचल की जनता के मूल हितों के अलावा लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, कल्याण और सर्वजन विकास जैसे सपने निश्चित ही साकार हो सकेंगे। पूर्वांचल राज्य मोर्चा के जरिए कई दशकों से संघर्ष कर रहे वरिष्ठ नेता राजेश आजाद ने रणभेरी से एक भेंट में अभी दलों से मांग की , की वे अपने संकल्प पत्रों में पूर्वांचल राज्य के मुद्दे को भी विशेष रूप से सम्मिलित करें जिससे एक तरफ महिलाओं और शोषित समाज को न्याय दिलाना सुनिश्चित हो सके।

भूमिहीनों को कृषि के लिए भूमि आवंटित की जा सके और इस नए प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सके। चुनाव के अवसर पर जारी अपने अनुरोध पत्र में पूर्वांचल के वरिष्ठ नेताओं ओमप्रकाश यादव, देवनाथ पटेल, डॉ. रश्मि अग्रवाल, नरेंद्र प्रकाश चंचल, चिन्मय चटर्जी, कुमार हेमंत, शैलेन्द्र दुबे व चांद क्रांतिकारी ने समवेत मांग उठाई है कि पूर्वांचल के चुनाव से पूर्व यहां के राजनीतिक दल इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें। किसानों, बुनकरों, दलितों के अलावा आदिवासियों, वनवासियों, पत्रकारों, साहित्कारों, कलाकारों के भरण-पोषण हेतु सकारात्मक पहलकदमी करें व पूर्वांचल के जनमानस की आकांक्षाओं को मूर्त रूप देते हुए इस कल्पना को वास्तविक धरातल पर उतारें।