काव्य रचना
स्वतंत्रा
स्वतंत्र देश के परतंत्र नागरिकों जागो
अपने अधिकारों के प्रति ही नहीं
अपने कर्तव्यों के प्रति भी।
स्वतंत्र देश के परतंत्र नागरिकों जागो
अपने धर्म की रक्षा के लिए ही नहीं
दूसरे धर्मों के मान-सम्मान के लिए भी।
स्वतंत्र देश के परतंत्र नागरिकों जागो
अपनी बहू बेटियों की रक्षा के लिए ही नहीं
दूसरों की बहू बेटियों की सुरक्षा के लिए भी।
स्वतंत्र देश के परतंत्र नागरिकों जागो
अपनी स्वयं की स्वतंत्रता के लिए ही नहीं
अपनी दबी कुचली परतंत्र सोच की स्वतंत्रता के लिए भी।
राजीव डोगरा