जिला प्रशासन पर भारी वाराणसी के मनबढ़ बिल्डर !

जिला प्रशासन पर भारी वाराणसी के मनबढ़ बिल्डर !
  • पीएम के संसदीय क्षेत्र में संगठित अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं कुछ फर्जी बिल्डर 
  • जमीनों पर जबरिया कब्जा, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भवन निर्माण बन चुका है पेशा 
  • रसूख के दम पर बिल्डरों को मिलता है राजनीतिक और विभागीय संरक्षण
  • सीएम योगी के जीरो टॉलरेंस की नीति को ठेंगे पर रखते हैं मनबढ़ बिल्डर

अजीत सिंह

वाराणसी (रणभेरी): उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपराध, अपराधियों और भ्रष्टाचार के खात्मे के लाख दावे कर ले, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की ज़मीनी हकीकत इन दावों को ठेंगा दिखा रही है। यहां न तो अपराध रुक रहे हैं, न ही अपराधियों पर लगाम लग रही है। बल्कि अब अपराध का चेहरा बदल चुका है। सड़कछाप अपराध की जगह अब संगठित अपराध ने ले ली है जिसका सम्पूर्ण संरक्षण आपराधिक मानसिकता के बिल्डर, भू-माफिया और अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है। 

संगठित अपराध, अपराध की वह श्रेणी है जिसके तहत एक गिरोह या समूह आर्थिक लाभ लिए योजनाबद्ध, नियंत्रित और व्यवस्थित तरीके से गैरकानूनी कृत्यों को अंजाम देता है। यह सड़क पर झगड़ा करने या जेब काटने जैसा नहीं होता, बल्कि इसमें सत्ता, पैसे और प्रभाव का ऐसा खेल चलता है जो पूरे सिस्टम को चुप कराने की ताकत रखता है। वाराणसी में अब यही हो रहा है। रियल एस्टेट माफिया सत्ता के करीब है, पुलिस-प्रशासन की नाक के नीचे फर्जीवाड़ा चल रहा है, और कानून को खिलौना बना दिया गया है।

दबंग बिल्डरों का अड्डा बना बनारस, ज़मीनों पर अवैध कब्जा बना नया फैशन

वाराणसी में रियल एस्टेट सेक्टर अब धंधा नहीं बल्कि संगठित अपराध का कारोबार बन चुका है। राजनीतिक संरक्षण, पुलिस की चुप्पी तथा विकास प्राधिकरण के खुले संरक्षण में यहां मनबढ़ बिल्डर न केवल नियमों को धता बता रहे है, बल्कि शहर की ज़मीन और काशी की वास्तविक पहचान को भी जमींदोज करने पर आमादा है। वाराणसी में कई बिल्डर पहले खाली पड़ी ज़मीनों या किसी बुजुर्ग, बेसहारा या कमजोर व्यक्ति की ज़मीन पर नज़र डालते हैं। फिर उनकी ज़मीन पर कब्जा कर लिया जाता है। यह कब्जा या तो सीधा होता है या किसी विवादित जमीन पर ताकत के दम पर। इसके बाद वीडीए के अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर चालाकी से फर्जी दस्तावेज तैयार किए जाते हैं। जमीन के मालिकाना हक का नकली प्रमाण बनाकर वीडीए और राजस्व विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को रिश्वत देकर इन्हें वैध घोषित कराया जाता है।

फर्जी दस्तावेज़ों से फ्लैट या प्लॉट की बिक्री

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बिल्डरों का आतंक इस तरीके से हावी है कि वो फर्जी दस्तावेज बनाकर एक ही फ्लैट को 3-4 लोगों को बेच देते हैं। एक ही प्लॉट को बार-बार बेचना, और वादे के मुताबिक निर्माण न करना ये ऐसे माफिया गिरोह से जुड़े लोगों का सामान्य हथियार और धंधा बन चुका हैं।  इनके द्वारा ग्राहकों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं दी जाती है और जब विवाद की स्थिति में मामला थाने पहुंचता है तो पुलिस-प्रशासन का रवैया ऐसा होता है जैसे पीड़ित ही अपराधी हो। दरअसल यह भी उसी संगठित अपराध का एक पक्ष है।

निर्माण में भी होता है भ्रष्टाचार

बिल्डिंग निर्माण में घटिया सामग्रियों का इस्तेमाल कर बिल्डर लाखों-करोड़ों रुपये की बचत कर रहे हैं। न ईंट की गुणवता सही, न सरिए की गुणवत्ता का ख्याल। शहर में कई बार निर्माणाधीन इमारतों की दीवारें खुद-ब-खुद गिर जाती हैं। इससे मजदूरों की मौतें हो चुकी हैं, लेकिन एक भी बिल्डर पर गंभीर कार्रवाई नहीं हुई। इससे भी बड़ी बात इन इमारतों में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी भी खतरे में रहती है। अब यह सिलसिला इतना सामान्य हो चुका है कि वाराणसी में वीडीए के अधिकारियों की मिलीभगत और कूटरचित दस्तावेज के आधार पर बहुमंज़िला इमारतें खड़ी हो रही हैं। ज़ोनल अधिकारी और इंजीनियर केवल गरीबों के निर्माण पर कार्रवाई कर दिखावा करते हैं, लेकिन जो बिल्डर खिलाने-पिलाने और जेब भरने में माहिर हैं, उनके खिलाफ फाइल ठंडे बस्ते में चली जाती है। 

बिल्डरों को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण

पीएम के संसदीय क्षेत्र में बिल्डरों का मनोबल यूं ही सातवें आसमान पर नहीं है। इन बिल्डरों को स्थानीय नेता, मंत्री और सीएम के खासमखास तक का संरक्षण प्राप्त है। बिल्डरों को राजनीतिक संरक्षण यूं ही नहीं मिलता, बदले में चुनावी फंडिंग या साझेदारी का वादा होता है। सूत्रों की मानें तो कई नेताओं की मोटी रकम शहर के दबंग बिल्डरों द्वारा किए जा रहे अवैध निर्माणों में लगी हुई है। वीडीए के कुछ अधिकारी तो खुद बिल्डरों के एजेंट की तरह काम करते हैं। वे पहले ज़मीन देखकर फर्जी नक्शा पास करवाते हैं और बाद में कार्रवाई के नाम पर मोलभाव करते हैं।

धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग, काले धन को सफेद करने का धंधा

वाराणसी में ऐसे कई केस सामने आए हैं जहाँ बिल्डरों ने फ्लैट डुप्लेक्स बेचने के नाम पर लाखों रुपये लिए और बाद में निर्माण अधूरा छोड़ दिया। यह पैसा कहाँ गया? जवाब है...मनी लॉन्ड्रिंग। बिल्डर काले धन को प्रोजेक्ट्स में लगाकर वैध बनाते हैं। बाहरी ग्राहकों या बाहर से आए निवेशकों को लुभाकर पैसे लिए जाते हैं और फिर ठगी की जाती है। जो लोग विरोध करते हैं, उन्हें धमकाया जाता है। खासकर महिलाएं या बुजुर्ग जब शिकायत लेकर अधिकारियों के पास जाते हैं, तो वहां से उन्हें सिर्फ अपमान और निराशा मिलती है।

सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान...वीडीए के भाग्यविधाता ?

आपके अपने अखबार गूंज उठी रणभेरी ने बीते एक साल से अधिक समय से ऐसे तीन नाम को उजागर किया है जिसने वीडीए के अधिकारियों के साथ मिलकर, फर्जी दस्तावेज के आधार पर कई अवैध निर्माण करवा चुका है। चाहे वह निर्माण बृज इंक्लेव कालोनी के कब्रिस्तान की जमीन पर हो,नवाबगंज में एचएफएल एरिया पर निर्माण या फिर आईपी विजया के सामने की इमारत।
इन तीन नामों से आप भली भांति परिचित होंगे...सद्दाम, अल्ताफ और रिज़वान। इन तीनों के कारनामे इस बात की पुष्टि के लिए काफी है कि कैसे शहर में बिल्डरों ने अपने रसूख के दम पर अवैध कब्जा, फर्जी दस्तावेज के निर्माण पर अवैध निर्माण और पैसे के दम पर वीडीए के अधिकारियों के मुंह बंद कर रखे हैं। इन तीनों ने पिछले तीन सालों में वीडीए की नाक के नीचे दर्जनों अवैध निर्माण कर लिए हैं। सूत्र बताते हैं कि इन्होंने खुद ही मानचित्र तैयार करवा लिया, खुद ही पास करवा लिया, सब फर्जी दस्तावेज़ों पर। इनके खिलाफ हाई कोर्ट से लेकर लोकल थानों तक आदेश मौजूद हैं, लेकिन फिर भी ये फल-फूल रहे हैं। कारण स्पष्ट है इनकी पहुँच सीधे वीडीए के ज़ोनल अधिकारियों, इंजीनियरों और राजनीतिक प्रतिनिधियों तक है। इन लोगों ने बिना नक्शा पास कराए बहुमंज़िला इमारतें खड़ी कर दीं, अवैध कब्जा कर ज़मीनें हथिया लीं, विवादित जमीन पर भी निर्माण किया और अधिकारियों को रसूख के दम पर गांधी जी का बंदर बना दिया। इनके खिलाफ कितनी एफआईआर दर्ज हुईं, कितनी कार्रवाई हुई, और कितने लोग बेघर हुए, इसकी जानकारी भले प्रशासन के पास नहीं हो, लेकिन शहर जानता है।

क्या कानून की साख खत्म हो गई है ?

काशी अब सिर्फ धर्म व आध्यात्म की नगरी नहीं रही, बल्कि सांस्कृतिक राजधानी की पहचान वाला यह शहर अब बेतहाशा अवैध निर्माण और संगठित अपराध का भी केंद्र बनता जा रहा है। अगर यह सिलसिला नहीं रुका, तो आने वाले वर्षों में शहर एक ऐसे दलदल में फंस जाएगा जहाँ से निकलना मुश्किल होगा। और जिस विरासत के लिए काशी जानी जाती है वह विरासत विलुप्त हो जाएगी। ऐसे में काशी के लोग सूबे के मुखिया से यह जानने को आतुर है कि... क्या आपके दावों में कोई सच्चाई है, या यह अपराध ही है, जो अब सत्ता की छाया में पनप रहा है ?

पार्ट-29 


रणभेरी के अगले अंक में पढ़िए... वीसी ने वीडीए को बना दिया भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा !