Varanasi: नगर निगम की गोशालाओं में मशीन से बनाई जा रहीं लकड़ियां, अब गोबर की लकड़ी से जलेंगी चिता
वाराणसी (रणभेरी): मणिकर्णिका घाट भारत के पवित्र शहर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर स्थित एक पवित्र श्मशान स्थल है। यह घाट एक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल है, जहाँ मृतकों के अवशेषों का अंतिम संस्कार किया जाता है और माना जाता है कि उनकी आत्माएँ स्वर्ग में चली जाती हैं। हर दिन सैकड़ों लोग मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार देखने और मृतकों को श्रद्धांजलि देने आते हैं।
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर जलने वाली चिताओं में लकड़ियों के साथ ही गो काष्ठ यानी गोबर से तैयार लकड़ी का भी उपयोग होगा। धर्म- कर्म में गाय के गोबर से लेकर मूत्र तक का विशेष महत्व है। नगर निगम की इस पहल से पर्यावरण में सुधार होगा। साथ ही स्वच्छ भारत मिशन के अभियान को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए नगर निगम ने एक स्टार्टअप कंपनी के सहयोग से खास स्क्रूडर मशीन मंगाई है। इस मशीन में गोबर से बनी लकड़ी उपले के मुकाबले जल्दी व ज्यादा देर जलेगी तो धुंआ कम होगा। शवों के दाह संस्कार पर होने वाला खर्च भी आधा हो जाएगा।
बहुत कम लोग जानते हैं कि एक चिता को जलाने के लिए औसतन ग्यारह मन लकड़ी की जरूरत होती है। महाश्मशान मणिकर्णिका में तो आम दिनों में 70 से 100 चिताएं प्रतिदिन मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र घाट पर जलती हैं। एक चिता के लिए लगभग 07 से 09 मन यानी लगभग 300 किलो लकड़ी की जरूरत पड़ती है। काशी में लगभग प्रतिदिन 30 हजार किलो लकड़ी का उपयोग चिता जलाने में होता है। जो रख में तब्दील हो जाती है। अब इस यंत्र के जरिए लकड़ी को बचाने का जतन किया जाएगा। इस मशीन को स्थापित कर लेने के बाद पशुपालक भी लाभान्वित होंगे पेड़ों की कटाई से मुक्ति मिल जाएगी।
वाराणसी नगर निगम की दो प्रमुख गो शाला छितौनी, शहंशाहपुर में हैं। बाबतपुर ने एनजीओ की मदद से एक गोशाला संचालित की जा रही। शहर में एक कांजी हाउस है। नगर निगम के पास इस समय चारों जगह मिलाकर यहां लगभग 13 सौ गो वंश हैं। नगर निगम के अलावा वाराणसी जिले छोटे बड़े मिलाकर 125 से अधिक गो शालाएं हैं जहां से प्रतिदिन कई क्विंटल गोबर होता है। डेयरी से जुड़े किसानों के अनुसार एक गाय दिनभर 10 से 12 किलो गोबर करती है। अब नगर निगम के पास 13 सौ गो वंश है तो उस हिसाब से लगभग 13 हजार किलो गोबर प्रतिदिन निकल रहा।
गो शालाओं में पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए साफ सफाई जरूरी होती है। ऐसे नगर निगम के सामने उसकी गो शालाओं से प्रतिदिन लगभग 13 हजार किलो गोबर का निस्तारण बड़ी समस्या थी। नगर निगम के जन संपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि ठंड शुरू होने के साथ ही नगर निगम ने स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़ी महिलाओं की मदद से गोबर के उपले, कंडे बनाना शुरू किया है। इस बार नगर क्षेत्र में सार्वजनिक स्थानों पर गोबर के कंडे से अलाव की व्यवस्था की गई है। इस नई पहल से इस बार लकड़ी का कम उपयोग हो रहा है।
नगर निगम वाराणसी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य रामासरे मौर्य ने सदन की बैठक में गो वंश के गोबर से लकड़ियां तैयार के उन्हें श्मशान में उपयोग लाने का मुद्दा उठाया था। सदन में कहा कि नगर निगम को श्मशान घाट के साथ ठंड में अलाव के लिए लकड़ी की व्यवस्था करनी पड़ती है। नगर निगम की गो शालाओं में प्रतिदिन हजारों किलो गोबर व्यर्थ चला जाता है। नगर निगम मशीन के जरिए गोबर से लकड़ियां तैयार करकर उनका उपयोग अलाव जलाने और अंतिम संस्कार में लाए। सदन ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए नगर आयुक्त को गोबर से लकड़ी तैयार करने वाली मशीनों को मंगाकर शीघ्र कार्य शुरू कराए। इस पहल से पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा और पेड़ों की कटाई में भी कमी आएगी।
वाराणसी में पीएम मोदी के आने के बाद से गो वंश को लेकर बढ़ी सक्रियता थी कि चार वर्ष पूर्व शहंशाहपुर में सूबे का पहला कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट का शुभारंभ हुआ। 23 करोड़ की लागत से तैयार इस प्लांट की प्रतिदिन 11 सौ किलो बायो गैस उत्पादन की क्षमता है। प्रदेश सरकार ने वाराणसी समेत अयोध्या, गोरखपुर में 22 सौ से अधिक घरेलू बायोगैस संयंत्र स्थापित करा रही है।