काशी में इस बार देव दीपावली पर 10 लाख दीपों से रोशन होंगे गंगा घाट
वाराणसी (रणभेरी): दीपावली के ठीक 15 दिन बाद देव दिपावली का पर्व मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। वहीं धर्म व आध्यात्म की नगरी काशी में इसे बड़े ही भव्य तरीके से मनाने का विधान है। इस बार काशी की देव दीपावली पर 10 लाख दीपों की आभा से जगमग होगी। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का नव्य-भव्य परिसर सामने आने के बाद पहली बार 10 लाख की भीड़ की उम्मीद के साथ अब तक के सारे रिकार्ड टूटने की संभावना है। गंगा के किनारे के सभी होटल फुल हो चुके हैं। आसमान के सितारों के जमीन पर उतर आने का आभास देने वाली काशी की देव दीपावली को देखने के लिए दुनियाभर से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इस बार इसे और भव्यता देने को तैयारी है।
गंगा पार रेती में जलाए जाएंगे दो लाख दीप वाराणसी व मीरजापुर मंडल की पर्यटन उप निदेशक प्रीति श्रीवास्तव ने बताया कि देवोत्थान एकादशी के चार दिन बाद मनाई जाने वाली देव दीपावली पर इस बार वाराणसी के अर्धचंद्राकार घाटों पट 10 लाख दीप जलाने की योजना है। इसमें आठ लाख दीपक अर्धचंद्राकार घाटों पर जलेंगे और दो लाख दीप घाट के उस पार जलाए जाएंगे। इसके अलावा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम द्वार से लेजर शो के प्रोजेक्शन की तैयारी है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवलोक से सभी देवी- देवता गण पवित्र नगरी वाराणसी यानि महाकाल की नगरी काशी में पधारते हैं। इसलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को काशी में बहुत साज-सज्जा की जाती है।पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से सभी बहुत त्रस्त हो चुके थे। तब सभी को उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने उस राक्षस का संहार कर दिया। जिससे सभी को उसके आतंक से मुक्ति मिल गई। जिस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का संहार किया था, वह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। तभी से भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी पड़ा।इससे सभी देवों को अत्यंत प्रसन्नता हुई। तब सभी देवतागण भगवान शिव के साथ काशी पहुंचे और दीप जलाकर खुशियां मनाई। कहते हैं कि तभी से ही काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती रही है। इस दिन दीप दान का बहुत महत्व माना गया है। इसलिए इस दिन विशेष रूप से दीपदान किया जाता है।