श्री राम ने जयंत की एक आंख फोड़ दी
वाराणसी (रणभेरी सं.)। देवता अपने स्वार्थ में इतने उतावले थे कि छोटी छोटी बात पर उनकी निष्ठा ही डोलने लगती थी। तभी तो इन्द्र का पुत्र प्रभु श्रीराम के बल की थाह लेने पहुंच गया, लेकिन श्रीराम साक्षात प्रभु थे। भरत को विदा करने के बाद श्रीराम को धरती पर अवतार लेने का उद्देश्य पूरा करना था। वे वन में आगे बढ़े। रास्ते में उन्हें वे अवलम्ब मिलते गए जो उनके उद्देश्य में सहायक बनते गए।
रामलीला के 15वें दिन श्रीराम के चित्रकूट से पंचवटी पहुंचने तक का प्रसंग मंचित किया गया। मंगलवार को वन में श्रीराम के बल की थाह लेने के लिए इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का वेश बनाकर उनके पास गया और सीता के चरण 1 में चोंच मारकर भागने लगा। सीता के पैर से खून बहते देख राम ने एक बाण मारा। जान बचाने के लिए वह देवताओं की शरण में जाने लगा, लेकिन किसी ने उसकी सहायता नहीं की। अंत में वह नारद की शरण में गया। नारद ने उसे राम की शरण में जाकर क्षमा याचना करने को कहा। वह उनकी शरण में गया तो राम ने उसकी एक आंख फोड़ कर उसे अभयदान दे दिया। राम वन में अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे तो मुनि ने उनका आतिथ्य सत्कार करने के बाद उनकी स्तुति की। अनुसूया ने सीता को स्त्री धर्म सिखाया।
वन में राम मतंग ऋषि से मिले। आगे बढ़ने पर एक जगह उन्हें हड्डियों का ढेर दिखाई पड़ा। पूछने पर ऋषियों ने बताया कि यह उन ऋषि मुनियों की हड्डियां है जिन्हें राक्षसों ने खाया है। श्रीराम तत्क्षण घोषणा करते हैं कि अब यह धरती राक्षस विहीन कर दूंगा। आगे बढ़ने पर शरभंग, सुतीक्ष्ण तथा अगस्त आदि ऋषियों से मिलते हुए राम पंचवटी पहुंचे और वहां पर्ण कुटी बनाकर निवास करने लगे। लक्ष्मण ने उनसे कुछ जानने की इच्छा से ज्ञान, विराग, माया, भक्ति, ईश्वर और जीव के भेद को समझाने और शोक, मोह, और भ्रम दूर करने को कहा। इस पर श्रीराम ने उन्हें उपदेश दिया कि मैं और मेरा तू और तेरा यही माया है। इसी ने संसार को अपने वश में कर रखा है। उपदेश सुनकर लक्ष्मण उनके चरणों में गिर पड़े और कहा कि मेरा संदेह दूर हो गया। यहीं पर आरती के बाद लीला को विराम दिया गया।
मुकुट पूजन के साथ रामबाग की श्रीरामलीला का शुभारंभ
चिरईगांव/वाराणसी। रामबाग गोकुलपुर में मंगलवार को मुकुट पूजन के साथ श्रीरामलीला का शुभारम्भ हुआ। प्रथम दिन की श्रीरामलीला में नारद मोह की लीला का मंचन हुआ। नारद हिमालय की गुफा में अटल समाधि लगाए थे तो इन्द्र का दूत उन्हें देख भयभीत होकर इन्द्र से जाकर बताता है कि नारद आपका इंद्रासन छीनना चाहते है। इससे इन्द्र भयभीत होकर कामदेव को उर्वशी, मेनका आदि अप्सराओं के साथ नारद की समाधि तोड़ने को भेजते है। नारद समाधि से नहीं उठते हैं तो कामदेव उनसे क्षमा मांगते है।