पं. सुररंजन के सरोद वादन से श्रोता मंत्रमुग्ध

पं. सुररंजन के सरोद वादन से श्रोता मंत्रमुग्ध
पं. सुररंजन के सरोद वादन से श्रोता मंत्रमुग्ध

वाराणसी(रणभेरी)। श्री संकट मोचन संगीत समारोह के दूसरी निशा यू राजेश के मेंडोलिन एवं शिवमणि के ड्रम वादन से शुरू हुई। शिवमणि और यू राजेश की जुगलबंदी प्रस्तुति ने श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। शिवमणि ने अपने ड्रम से ऐसी सुरमई छटा बिखेरी की लोग दांतों तले उंगली दबाने के लिए मजबूर हो गये। वहीं यू राजेश की मेडोलीन के  सतरंगी संगीत से  पूरा मंदिर प्रांगण वाह -वाह कर उठा। उनके साथ इस बार पहली बार  सेंटसाईजर पर संगत कर रहे धर्मेंद्र मानसेटर ने भी अपने कला का ऐसा रंग बिखेरा के दूसरी निशा की प्रथम प्रस्तुति एक यादगार लम्हा बन गया। इसके पश्चात मंच संभाले ख्यातिलब्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने बांसुरी की प्रस्तुति से सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। उन्होंने शुरुआत राग मारू विहाग  की अवतारणा से की। रूपक और तीन ताल की गतकारी में सुर ताल की खूब रसधारा बही। उनके बांसुरी वादन को देखकर ऐसा लग ही नही रहा था कि उनपर उम्र का असर छू भी गया है। उन्होंने अपने बांसुरी वादन से श्रोताओं को खूब आनंदित किया। तीसरी प्रस्तुति  बिना नेहुल मेहता का कुचि पूडी नृत्य था उन्होंने हनुमान जी के चरणों में अपने नृत की प्रस्तुति कर भावांजलि अर्पित की। उन्होंने उन्होंने अपने सहयोगी कलाकारों के साथ कुचिपुड़ी नृत्य की तमाम विशेषताओं को दर्शाते हुए नृत को विराम दिया।

पूरी रात भजनों से झूमते रहे श्रोता

इसके बाद विश्व विख्यात मोहन मोहन वीणा वादक ग्रामी अवार्ड से सम्मानित पंडित विश्व मोहन भट्ट ने अपने शिष्य पुत्र सलिल भट्ट के साथ मंच संभाला और मोहन वीणा की शानदार प्रस्तुति कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।  पिता पुत्र की जुगलबंदी ने वादन का समापन  भजन धुन से किया। इसके पश्चात मंच पर आए युवा गायक बंधु प्रभाकर कश्यप और दिवाकर कश्यप अपनी मधुर गायन  से  भोर को निमंत्रण दिया। आप लोगों ने राग नट भैरों में विलंबित एकताल, तीन ताल में बंदिश गाकर गायन के प्रथम अध्याय का समापन किया। इसके पश्चात हनुमान जी की आरती शुरू हुआ। 

कश्यप बंधुओं ने बांधी समाँ

दूसरे अध्याय मे कश्यप बंधुओ ने अपनी गायन की सुंदर प्रस्तुति का सबको रस सूक्त कर दिया। उनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्रा और संवादिनी पर पंडित धर्मनाथ मिश्रा, सारंगी पर गोरी बनर्जी ने लाजवाब संगत कर समारोह को यादगार बनाया। अंतिम प्रस्तुति में कोलकाता से  पधारे पंडितसुर रंजन मुखर्जी ने सरोज वादन करते हुए राग बसंत मुखारी की अवधारणा किया। आए हुए कलाकारों का स्वागत अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के महंत प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्र ने किया।