काव्य-रचना
कर के देखीये....
इश्क किजीये कभी ज़माने को खफ़ा कर के देखीये
ये कितनी किसकी है आंखो मे अश्क सजा के देखिये
कभी करिये वफा और इश्क को आज़मा के देखीये
मेहबूब को बस एक दफा अपना के देखिये
मज़ा लीजे शहर ए इश्क का निगाहें भर के देखीये
ज़कात ए इश्क की एक मेहरबानी कर के देखिये
सलामत है चिराग ए जख्म तेरी बेवफाई का
मोहोब्बत मे दिखावे की विदाई कर के देखिये
बदल दीजे सुबह को आप अपनी शाम की खातिर
बदलते मौसमो मे बागबानी कर के देखिये
ज़माने की अदाएं है ये वादे भूल जायेंगे
कभी रस्मों से इनके बेईमानी कर के देखिये
नज़र आयेगी खुशबू भी दुआए चल के आयेंगी
कभी वादे किसी से आसमानी कर के देखिये
मुझे खुद पर यकीं है इश्क़ है ओर बेकरारी है
कभी खुद पर भी ऐसी आजमाईश कर के देखिये
किसी के ज़ख्मो पर मरहम किसी के आंखो मे आंसू
मोहोब्बत मे कभी आखों से बारिश कर के देखिये
बनाएगा खुदा फिर राह और खुद ही चलाएगा
मोहोब्बत पाने को दिल से गुजारिश कर के देखिये-
शौर्या सिंह