मां सरस्वती की मूर्ति को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार
- र्तिकारों पर इस साल भी कोरोना की मार, नहीं मिल रहे खरीदार
वाराणसी (रणभेरी)। ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा शनिवार को होगी। मां सरस्वती की पूजा ज्ञानदायनी के रूप में होती है इसलिए स्कूली छात्र-छात्राएं वसंत पंचमी के दिन पूर्ण पवित्रता और आस्था के साथ मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करती है और मां से ज्ञान की वरदान मांगते हैं। सरस्वती पूजा को लेकर छात्रों में विशेष उत्साह देखा जाता है। इस साल अब बसंत पंचमी का त्योहार आने में मात्र कुछ ही दिन शेष है। ऐसे में शिक्षा की नगरी काशी में इस त्योहार को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में जोरो से चल रही हैं। शनिवार को बसंत पंचमी को लेकर शहर के सभी शिक्षण संस्थानों में माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने के मूर्तियों का आॅर्डर पहले से ही मूर्तिकारों को दे दिया गया है।
हालांकि कोरोना को लेकर मूर्तिकारों की स्थिति पहले से बदतर हो गई है। काफी लंबे समय तक शिक्षण संस्थान बंद रहे है, जिसकी वजह से इसबार सरस्वती प्रतिमा बनाने का आर्डर बहुत कम मिला है। 5 फरवरी को मनाये जा रहे सरस्वती पूजन यानी कि वसंत पंचमी को लेकर शिक्षण संस्थानों और पंडालों की ओर से मूर्तिकारों को महज 15 से 20 मूर्तियों का आॅर्डर मिला है। हर बार 30 से 40 मूर्तियों का आर्डर मिलता था। ऐसे स्थिति में मूर्तिकारों की तकलीफ बढ़ती जा रही है। एक तो जैसे-तैसे कोरोना काल से आर्थिक स्थिति खराब हुई, ऊपर से अब मूर्तियों का आर्डर कम मिला है। इस परिस्थिति में वे करे भी तो क्या करें ! बसंत पंचमी की राह मूर्तिकार पूरे सालभर से देखते रहते हैं, लेकिन इस तरह के इतने कम आर्डर ने उनकी कमर तोड़कर रख दी है।
बसंत पंचमी के दिन शिक्षण संस्थानों के अलावा कई जगहों पर पंडालों में सरस्वती की प्रतिमा सजाई जाती है और उनका पूजन किया जाता है, लेकिन इस बार उनका कहना है कि कोरोना काल ने उनकी कमर तोड़ दी है। मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार ने बताया कि हम कई महीनों से कड़कती ठंड में मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में बहुत कम मूर्तियों के लिए आ रही डिमांड ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि सारी बनी हुई मूर्तियां बिकेंगी भी या नहीं। वहीं एक अन्य मूर्तिकार ने बताया कि बसंत पंचमी पर मां की मूर्ती बनाने का कार्य अंतिम दौर में चल रहा है। इसमें बांस, पटरा, सुतली, पुआल, गंगा जी की मिट्टी और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। मैं और मेरा भाई हम दोनों मिलकर मूर्तिया बनाते हैं। एक-एक मूर्ति तैयार करने में हमे 10 दिन लगता है। ऐसे में यदि ये मूर्तिया नहीं बिकी, तो इसे सालभर तक सहेज कर रखना होगा, ताकि अगले साल इसे बेच सके।