इस बार घाटों पर कैसे मनाया जायेगा डाला छठ, गंगा घाटों पर जमीं है मिट्टी, कीचड़ का है अंबार

वाराणसी (रणभेरी): सूर्योपासना का महापर्व डाला छठ अब धीरे-धीरे नजदीक आ रहा है। इस वर्ष यह पावन पर्व दीपावली के बाद 25 अक्टूबर से शुरू होकर 28 अक्टूबर को संपन्न होगा। चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होगी, जिसके साथ व्रतियों का शुद्ध आचरण और नियम संयम आरंभ होता है। 25 अक्टूबर को सूर्य षष्ठी व्रत का प्रथम नियम संयम रखा जाएगा, जबकि 26 अक्टूबर को द्वितीय नियम संयम और 27 अक्टूबर को तृतीय नियम संयम के साथ अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। अंतिम दिन 28 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा।
डाला छठ का पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं पूरे नियम, संयम और भक्ति भाव से भगवान सूर्य तथा छठी मैया की पूजा-अर्चना करती हैं। घाटों पर बनते छठ गीतों, प्रसाद की सुगंध और लोकगीतों की मधुर धुनों से वातावरण भक्तिमय हो उठता है। हालांकि इस बार एक बड़ी चिंता यह है कि गंगा घाटों की स्थिति अत्यंत जटिल बनी हुई है। हाल ही में गंगा में आई बाढ़ के कारण कई प्रमुख घाटों पर मोटी परत में मिट्टी और गाद जमा हो गई है। प्रशासन द्वारा अब तक घाटों की पूरी तरह से सफाई नहीं कराई जा सकी है। कई जगहों पर फिसलन, दलदल और जलभराव की स्थिति बनी हुई है। इसके अलावा, कुछ घाटों का आपसी संपर्क भी टूट गया है, जिससे श्रद्धालुओं के आवागमन में कठिनाई आ सकती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि समय रहते सफाई और मरम्मत का कार्य तेज़ी से नहीं किया गया, तो श्रद्धालुओं को छठ पूजा करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। प्रशासन ने दावा किया है कि अगले कुछ दिनों में सभी घाटों को साफ-सुथरा और सुरक्षित बना दिया जाएगा। श्रद्धालु भी उम्मीद कर रहे हैं कि सूर्योपासना का यह महापर्व इस बार भी पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ संपन्न हो सकेगा।
पूर्वांचल ही नहीं बल्कि बिहार से आते हैैं लोग
सूर्योपासना के महापर्व डाला छठ पर बनारस में पूर्वांचल ही नहीं बल्कि बिहार एवं आसपास के राज्यों से लाखों लोग यहां डाला मनाने के लिए आते हैं। इनमें व्रती महिलाओं संग उनके परिजन शामिल रहते हैं। डाला छठ पर पूरा बनारस मिनी बिहार बन जाता है। बनारस में ही बिहार से आये हजारों लोग यहीं पर बस गये हैं। बनारस से ही सटा बिहार का भभुआ, सासाराम, बक्सर आदि कई जिले हैं जहां से डाला छठ पर हजारों की संख्या में लोग आते हैं। बनारस में काफी लोग ऐसे भी हैं जिनके रिश्तेदार बिहार में रहते हैं जो यहां पर डाला छठ पर हर साल पर्व मनाने के लिए आते हैं। लेकिन इस साल गंगा घाटों पर जमीं मिट्टी के चलते डाला छठ पर बिहार से आने वालों की संख्या कम हो सकती है। अगर लोग बनारस में डाला छठ मनाने आ भी गये तो वह फिर कैसे डाला छठ मनायेंगे।
गंगा घाटों की स्थिति यह है कि गंगा का जलस्तर कम तो हुआ है लेकिन अभी भी वह स्थिति नहीं बन पायी है। जो पहले हुआ करती थी। बनारस में राजघाट, प्रहलादघाट, तेलियानाला घाट, गायघाट, त्रिलोचन घाट, मीरघाट, ललिता घाट, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद घाट, दशाश्वमेधघाट, प्रयाग घाट, तुलसीघाट, अस्सी घाट सामने घाट पर भी लोग डाला छठ मनाते हैं। डाला छठ के आगमन में अब समय बहुत कम है लेकिन न तो घाटों की सफाई हुई है और न ही घाटों पर से मिट्टी हटायी गई है। ऐसे में फिर व्रती महिलाएं कैसे करेंगी सूर्योपासना का महापर्व डाला पर पूजा।