जन्मे है राम रघुरैया, अवधपुर में बाजे बधैया
वाराणसी (रणभेरी सं.)। जो आनंद सिंधु सुखरासी, सीकर तें त्रैलोक सुपासी। जो सुखधाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक बिश्रामा...। यानी ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिसके एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उनका नाम राम है। जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाले हैं। अयोध्या में सब कुछ था। धन, धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि सब कुछ। लेकिन फिर भी राजा अवसादग्रस्त थे। चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि थी लेकिन घर आंगन सूना था। इतना बड़ा महल बच्चों की किलकारी बिना सूना सूना सा था। गुरु वशिष्ठ ने उपाय बताया और फिर क्या था। कल जो अकाशवाणी हुई थी उसे सच साबित होना था, सो हुआ प्रभु ने खुद तो अवतार लिया ही साथ तीन अन्य भाइयों को भी साथ लेकर आये। जब चार बच्चों की किलकारियां किसी सूने घर आँगन में गूंजेगी तो खुशियों का सागर तो हिलोरे मरेगा ही। कुछ ऐसे ही प्रसंग बुधवार को रामलीला के दूसरे दिन मंचित किये गए। मंचन का केंद्र आज अयोध्या नगरी थी। अयोध्या के राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के पास पहुँचते है। उनसे अपने मन की व्यथा कहते हुए बिलख पड़ते है। कहते है कि उम्र का चौथा पन आ गया। लेकिन कोई संतान न होने से मन बड़ा व्यथित और उदास रहता है। तब वशिष्ठ उन्हें समझाते हुए कहते है कि पूर्व जन्म में तुम्हारा नाम मनु और कौशल्या का नाम सतरूपा था। तुम लोगों ने भगवंत को अपना पुत्र होने का वर मांगा था। परमात्मा ने अपने अंशो समेत अवतार लेने का वर दिया है। धीरज रखो तुम्हे चार पुत्र होंगे। वशिष्ठ की सलाह पर राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ करते है। अग्निदेव प्रकट हो उन्हें एक हव्य सौंप उसे तीनों रानियों को बांटने को कहते है। दशरथ वैसा ही करते है। इसके बाद विराट झांकी होती है। देवतागण और कौशल्या उनकी स्तुति करती है। श्रीराम कहते है कि तुमने हमारे जैसा पुत्र मांगा था उसे सत्य करने के लिए हम तुम्हारे घर में प्रकट हुए है। कौशल्या उनसे यह रूप छोड़ बाल लीला करने का आग्रह करती है। श्रीराम बाल रूप धारण कर रोने लगते है। अयोध्या में खुशियां छा जाती है। बैंड बजाए जाते है। बधाई गीत गाये जाते है। राजा दशरथ ब्राह्मणों को दान देते है। गुरु वशिष्ठ चारों बच्चों का नाम करण श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के रूप में करते है। चारों बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार होता है। गुरु कुल में शिक्षा सम्पन्न होती है। श्रीराम एक हिरण का शिकार करके राजा दशरथ को बताते है कि इसे मैने मारा है। इसके बाद कौशल्या चारों भाइयों की आरती उतारती है।
चारों भाइयों की पहली आरती
रामनगर में श्रीराम जन्म की लीला के दिन पहलीबार ऐसा होता है जब चारों भाइयों की आरती होती है। यूं भी रामनगर की रामलीला में आरती को सबसे खास दर्जा प्राप्त है। अयोध्या में श्रीराम के साथ तीनों भाई भी जन्म लेते हैं। इसलिए चारों भाइयों श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न की पहली आरती आज ही के दिन होती है। चारों भाइयों के जन्म से पहले विराट दर्शन की झांकी होती है।
राम जन्म की लीला ने किया मुग्ध
शिवपुर स्थित रामलीला मैदान परिसर में आयोजित 33 दिवसीय रामलीला के दूसरे दिन भगवान श्रीराम के जन्म की लीला का मंचन हुआ। रामजन्म के समाचार से राजा दशरथ सहित संपूर्ण अयोध्या में खुशी छा जाती है। रामलीला मंचन के क्रम में ही एक अन्य दृश्य में राजा दशरथ तीनों रानियों के साथ प्रभु राम की बाललीला का आनंद उठा रहे हैं। इसके बाद एक अन्य दृश्य में चारों भाइयों का नामकरण संस्कार किया जाता है।
सोहर से गुंजायमान हुआ मंडप
जाल्हूपुर के टूड़ी नगर की प्राचीन रामलीला में शुक्रवार को वशिष्ठ मुनि के सानिध्य में भगवान रामजन्म की लीला हुई। सभी अयोध्या वासी घी का दीपक जलाकर प्रभु राम के जन्म का स्वागत करते हैं। व्यास पीठ से रामायणी टीम के साथ पंडाल में बैठे रामलीला प्रेमी दर्शक भी तालियां बजाकर भये प्रकट कृपाला दीनदयाला... गाने लगे। किशोरावस्था में भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के यज्ञोपवीत संस्कार का मंचन हुआ।