काव्य-रचना
हां मैं बेरोजगार हूं
मैं दरबदर भटकता बेरोजगार हूं
कोर्ट का सताया याचक हूं,
पुलिस के डंडों का शिकार हूं
भर्ती के इंतजार का तलबगार हूं,
हां मैं बेरोजगार हूं।
मैं जुमलेबाजों के नीतियों का शिकार हूं
ढलती जवानी का सूर्यास्त हूं,
समाज के तानों का बोझिल हूं
उच्च शिक्षा डिग्री धारी हूं,
हां मैं बेरोजगार हूं।
मैं अपने परिवार की आशा हूं
किसी की उम्मीदों का सहारा हूं,
अपने जीवन से हारा हूं,
शिक्षक उम्मीदवार हूं
हां मैं बेरोजगार हूं।
मैं पकौड़ा नीति का परिहार हूं
राजनीति का शिकार हूं,
ओवर एज से परेशान हूं
घूसखोरों से लाचार हूं,
हां मैं बेरोजगार हूं।
प्रशांत कुमार प्रजापति