काव्य-रचना
अपना गांव
घूम तो आये पूरा शहर
मगर गांव जैसा सुकुन कहा,
माना सब कुछ शहर में है
मगर गांव जैसे लोग कहा,
यहाँ हर कोई फुर्सत में है
मगर खाली कोई नही,
यहाँ मकान गाड़ी सब कुछ है
पर खुद से बात करने वाला कोई नही,
शहर में रहने वाले लोग
खबर दुनिया की रखते है,
मगर पड़ोस कौन है
पता नही,
यह मुश्किल से मिलता है
शहर मे कोई अपना
यू तो कहने को अपने बहुत है,
शहर तो बहुत घूमे
अपना गांव ही सबसे प्यारा है,
घर तो गांव में ही है
शहर तो बस ठिकाना है
महेश कुमार प्रजापति