काव्य-रचना

काव्य-रचना

    ठंड में गांती     

सर्दियों में बीते जमाने में गांती
चुनौती थी सर्दी भगाने की
हांड कंपाते सर्दी में गांती
ठिठुरे हुए बदन को देता था आराम!

आज की पीढ़ी के लिए
बेशक नये-नये फैशन के 
मफ़लर ऊनी टोपी हैं
पुरानी पीढ़ी के लिए 
गांती मोटे कम्बलों व चादरों
को देह में लपेटकर सर्दी
से लड़ने की चुनौती थी!

गँवई शहरी आमजन के पास 
तब थे, सर्दी से मुकाबले के 
कुछ सस्ते, पारम्परिक कपड़े
लेकिन थे बहुत कारगर
गांती उनमें एक महत्वपूर्ण
सर्दी भगाने का मुख्य उपाय था!

गाँवों में अब भी कहीं-कहीं मौजूद है, शहरों से यह विलुप्त है
गांती कहीं हॉट बाजार में
नहीं मिलता था
यह हर घर में बना-बनाया 
मिलता था
बस सिखना पड़ता था तो
गांती बांधने का हुनर!

गांती घर में मौजूद थी
बाबू जी की कोई
पुरानी धोती या गमछा 
माँ की पुरानी साड़ी या शॉल
सिर पर लपेटने के बाद
उसके दोनों खूंटों को
गर्दन से बाँध दिया जाता था
कपड़े का बाकी हिस्सा
देह के हर तरफ लटका दिया जाता था!

यह सिर, कान, गर्दन व सीने को
 सर्दी से ऐसी सुरक्षा देता था
सर्दी तो क्या सर्दी का भूत भी
भीतर प्रवेश नहीं करेगा
गांती एक लिहाफ था
सर्दी से बचने का साथ था

गांती बच्चों के लिए सर्दी 
का लिहाफ मात्र ही नहीं था
उसमें माँओं, दादियों, नानियों
का वात्सल्य और उनकी चिंताएं
भी लिपटी होती थीं 
पहले की पीढ़ियों ने कपड़े
के उसी टुकड़े से सर्दियों के
पहाड़ काटे थे
अब के स्वेटर, थर्मल, कोट, जैकेट भी
गर्मी के वो एहसास नहीं देते!

गांती अब भले ही गंवार होने की 
निशानी हो सकती है
लेकिन हांड़ कंपाती सर्दी में
आज भी इसे बांधने की प्रबल इच्छा होती है।

मनोज कौशल