काव्य-रचना
श्री लाल बहादुर शास्त्री
संघर्षों में बीता बचपन जिनका बीती पूरी जवानी ,
आज सुनाते हैं एक ऐसे राष्ट्रवीर की अमर कहानी ।
संघर्ष कुछ ऐसा था कि गंगा तैरकर पढ़ने जाते थें ,
पाई- पाई बचाकर उसे स्व शिक्षा में लगाते थें।
बढा़ संघर्ष जीवन में जब गाँधी का सानिध्य मिला,
काशी का लाल राष्ट्र पर न्यौछावर होने को बढ़ चला ।
स्वतंत्रता आंदोलनों में बढ़ -चढ़कर भाग लियें,
बड़े - बड़े मुद्दों पर आसानी से गोरों को मात दियें ।
राष्ट्रनिष्ठा सच्चे लगन से कांग्रेस में मान मिला,
स्वतंत्र भारत के प्रथम सरकार में खूब सम्मान मिला ।
एक रेल हादसे ने पूरा मन झकझोर दिया,
खुद को जिम्मेदार ठहराते हुए
रेल मंत्री का पद छोड़ दिया।
सन् 65 में जब पाक ने भारत को आंख दिखाया,
कुशल नेतृत्व बल पर उसे दूध छठी का याद दिलाया।
"जय जवान जय किसान" का जब कियें उद्घोष
एक- एक देशवासी में भर गया राष्ट्रभक्ति का जोश ।
ईमानदारी व सादगी को स्मरण करता है पूरा वतन,
भारत रत्न लालबहादुर शास्त्री जी को कोटिशः नमन।
हेमराज वर्मा