काव्य-रचना
"कोई अर्थ नही"
नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अंतर्मन,
तब सुख के मिले समंदर का
रह जाता कोई अर्थ नही।
जब फसल सुख कर जल के बिन
तिनका तिनका बन गिर जाए,
फिर होने वाली वर्षा का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
संबंध कोई भी हो लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन संबंधों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
मन कटु वाणी से आहत हो
भीतर तक छलनी हो जाए,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं।।।
आनंद कुमार सेठ