IIT-BHU का 10वां दीक्षांत समारोह
वाराणसी (रणभेरी): IIT-BHU में आज भारतीय सनातनी पद्धति से 10वें दीक्षांत समारोह रविवार को स्वतंत्रता भवन में शुरू हुआ। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि इसरो के चेयरमैन व अंतरिक्ष विभाग के सचिव सोमनाथ एस तथा आइआइटी आफ गवर्नर के चैयरमैन पद्मश्री डा. कोटा हरिनारायन हैं। 70 साल के इतिहास में अभी तक भारत भर के कई विश्वविद्यालयों में आधिकारिक तौर पर पूरी तरह से पारंपरिक स्टाइल में दीक्षांत को नहीं अपनाया गया था। पहली बार कार्यक्रम की शुरुआत और अंत दोनों वैदिक मंत्रों के साथ हुई। इस दौरान सभागार में बैठा हर व्यक्ति और छात्र कुर्सी छोड़ खड़े हो गए।
इस समारोह में कुल 58 विद्यार्थियों को 84 मेडल व पुरस्कार प्रदान किए गए।वहीं संस्थान के विभिन्न पाठ्यक्रमों के 1610 मेधावी छात्रों को उपाधि प्रदान की गई। इसमें 766 बीटेक, 252 आईडीडी, 368 एमटेक/एमफार्मा व 36 एमएससी छात्रों को विभिन्न उपाधियां शामिल हैं। समारोह में 188 से अधिक शोधार्थियों को डिग्री दी गई। इस वर्ष बीटेक स्तर पर शैक्षणिक क्षेत्र में संपूर्ण उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्र कुशल टिब्रेवाल को प्रेसीडेंट्स स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। वहीं सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन व संगठनात्मक व नेतृत्व क्षमता प्रदर्शित करने के लिए मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्र पुलकित गुप्ता को डाइरेक्टर्स स्वर्ण पदक से विभूषित किया गया।
वहीं उत्तर प्रदेश के गृह सचिव अवनीश अवस्थी समेत वाराणसी पुलिस के कई अधिकारी भी पहुंचे हैं। मंगलाचरण और कुलगीत के बाद दीक्षांत समारोह के अंतर्गत डायरेक्टर मैसेज की शुरुआत हुई। निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन ने कहा कि इसरो ने क्रायोजेनिक इंजन से लेकर सैटेलाइट के निर्माण, चंद्रयान के लांचिंग सहित कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कर चुका है। दीक्षांत समारोह में डायरेक्टर मैसेज के बाद देशभर के 9 विशिष्ट वैज्ञानिकों को डिस्टींग्विश एलुमनस अवार्ड दिया गया। प्रो. आरके सिंह बताते हैं कि यह ठीक उसी प्रकार से जैसे सनातनी परंपरा के अनुसार, गुरुकुल से घर वापस लौटने पर 'समावर्तन संस्कार' होता था।वैदिक मंत्रों के पाठ से देवी-देवताओं का हवन और छात्रा को अंतिम उपदेश दिया जाता था। इसे ही प्राचीन काल में दीक्षांत समारोह कहा जाता था। प्रो. आरके सिंह ने बताया कि साल 2012 में BHU से अलग IIT बनने के बाद हमने 10 दीक्षांत समारोह कराए और अब जाकर पूरी प्रक्रिया भारतीय स्टाइल में ढालने में मदद मिली है।